सोमवार, 29 अप्रैल 2013

नदिया




सुनो, सुनाऊं, तुमको मैं इक, मोहक प्रेम कहानी, 

सागर से मिलने की खातिर, नदिया हुई दीवानी ...


कल कल करती, जरा न डरती, झटपट दौड़ी जाती, 

कितने ही अरमान लिए वो, सरपट दौड़ी जाती, 
नई डगर है, नया सफ़र है, फिर भी चल पड़ी है, 
तटबंधों को साथ लिए वो धुन में निकल पड़ी है, 
पर्वत ने पथ रोका  पर , उसने हार न मानी।। 
सागर से मिलने ...... 

मटक मटक कर, लचक लचक कर, इठलाती, बलखाती, 

बहती जाये नदिया रानी, गाती गुनगुनाती, 
हवा ने रोका,  गगन ने टोका, क्यूँ  तुम  जिद पे  अड़ी हो, 
सागर से मिलने की धुन में, हमको भूल चली हो, 
बात न उसने मानी किसी की, करनी थी मनमानी ... 
 सागर से मिलने ......

सागर की लहरों ने पूछा, हम में मिल क्या पाओगी, 
मिट जायेगा नाम तुम्हारा, खारा जल कहलाओगी, 
नदिया बोली तुम क्या जानो, प्रेम लगन क्या होती है, 
खुद को खो कर प्रिय को पाना, प्रेम की मंजिल होती है।। 
जरा न बदली चाल नदी की , बदली नहीं रवानी .... 
सागर से मिलने ...... 
लहरों ने दिवार बनाया, नदिया के रुक जाने को, 

नदिया ने भी जोर लगाया, सागर से मिल जाने को, 
जाकर नदी मिली सागर से, झूम उठा जग सारा, 
जैसे कान्हा की बंशी सुन, नाच उठे ब्रिजबाला, 
रस्ता रोक सकीं न उसका, वो लहरें तूफानी। ..सागर से मिलने ...... 


Anita Maurya 

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

यूँ ही


यूँ ही

कभी-कभी
दिल के झरोखे से
तुम्हारी यादें
सराबोर कर जाती है…

स्वयं से परिचित होने
और स्वयं में ही

ठहर जाने की इच्छा लिए...!!

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

'वो'

'वो'
उसका आखिरी गीत था,
कल से उसे
अपने पंखों को विराम देना था,
अपने सपनो की
रफ़्तार रोकनी थी,
वो शायद
तैयार नहीं थी उसके लिए,
'गीत'
तो उसकी रूह में बसते थे,
थरथराते होठों,
पनीली आँखों
और रुंधे गले से गाये गीत
वो छाप न छोड़ सके
जो अमूनन उसके गीत छोड़ते थे,
वो गाती जा रही थी,
अपनी ही रौ में,
'बेपरवाह'
उसे पता ही नहीं चला,
'कब'
उसके गीतों का दर्द
उसकी आँखों में उतर आया,
तेजी से आंसुओं को
पलकों में भींच लिया उसने
और होठों पर सजा ली,
एक प्यारी सी मुस्कान ..
मगर,
बेहिसाब कोशिशों के बाद भी,
उसके अश्क पलकों पर ठहर न सके,
छलक ही पड़े,
उसकी आवाज़ गले में ही
घुट कर रह गयी,
'और' वो गीत सचमुच बन गया
उसके जीवन का 'आखिरी गीत' !!ANU!! ....


Anita Maurya 

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

माला

'मैं' 
नहीं देखती, 
अपनी कविता में, 
मात्रा, लय, छंद , 
पिरो देती हूँ 
अपने मन के भाव 
एक धागे में, 
गूँथ लेती हूँ 
'माला' शब्दों की, 
मालाएं भी 
अजीबो गरीब तरह की, 
कोई ताजे फूल का, 
तो कोई उदास उदास सा , 
कोई सुर्ख लाल रंग का, 
तो कोई उड़ी से रंगत लिए, 
कभी दर्द से उफनते सागर में 
डूब जाते हैं शब्द, 
तो कभी हंसी और खुशियों की 
बौछार दे जाते हैं, 
कभी कभी तो 
चांदनी की सारी रोमानियत 
समेट लेते हैं, 
"तुम्हे' 
मन का लिखा, 
पढना तो आता है 'न' ... !!अनु!!



Anita Maurya