मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012


जज़्बात ------होली के रंगों के साथ ....



होली की सुगबुगाहट बसंत पंचमी से ही शरू हो जाती  है ----------एक बयार ब्बहने लगती है जो सुकून देती है ......

ब्रज में वसंत पंचमी के अवसर पर चौराहों पर होली जलाने वाले स्थानों पर डंडा  गाड़े जाने के साथ ही मंदिरों में होली गायन की परंपरा शुरू हो जाती है.....
और शहरों में भी प्रतीकात्मक होली जगह -जगह चौराहे पर रख दी जाती है ........

यूँ तो होली की छटा पूरे भारत में निराली होती है पर उत्तर प्रदेश में इसका रंग देखते ही बनता है ...
वृन्दावन ..मथुरा की ..होली तो यूँ भी विश्व प्रसिध है ...

बरसाने की लट्ठ मार होली देखने विश्व भर से लोग देखने पहुँचते हैं ...........बरसाना की लठमार होली भगवान कृष्ण के काल में उनकी लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है।

और बात करें अपनी होली की तो .....करीब पंद्रह दिन पहले से ही ...महल्ले के बच्चे घर -घर होली का चन्दा इकठ्ठा करते थे ....

ख़ुशी से या ज़बरदस्ती .....चंदा तो लेना ही होता ......कई बार शरारती लड़के किसी की चारपाई या ..कोई लकड़ी का सामान भी होली में डाल     देते पर ............सब इसे शरारत का ही नाम देते ..कोई बुरा ना मानता ....जो चंदा देता..नारा लगता 

'सच्चा भाई सच्चा ये घर सच्चा'......और कोई न दे तो ........' हुक्के  पे हुक्का ये घर भूक्का ' 

और सब शोर मचाते निकलते तो आंटी पैसे पकड़ा ही देती थी ......सबके घर में आलू के चिप्स ,आलू ,मैदा और साबूदाने के पापड बनने शुरू हो जाते थे ..........

चार दिन पहले से.......बेसन के सेब ...दाल तल कर घर का विशेष नमकीन बनाया जाता ........गुझिया होली का विशेष खाद्य पदार्थ होता है ...कई दिन पहले से मावे ,बूंदी के लड्डू की और सूजी की गुझिया बनायी जाती थी ......

नमक पारे , शकरपारे  ...मठरी ....नमक और मोयन डली मैदा ...से अनेक  प्रकार की आकृतियाँ बनाते ..जैसे करेले ....कली ....काजू .....और सबसे स्वादिष्ट बनती थी ............सूजी की  भुरभुरी और खस्ता ____सतपुली __.....

बेहद उत्साह के साथ हर घर में ये सभी चीज़ें मिल कर बनायी जाती थीं ....मोहल्ले में सब एक -दूसरे के घर में जाते ....और मदद करते ..........सब मिल कर एक -एक घर का काम बारी -बारी निपटाते थे 

एक दिन पहले बनते थे दही बड़े ....जो उड़द और मूंग की दाल से बनाते थे .....हमारे यहाँ तो उसमें डालने के लिए मम्मी के हाथ का विशेष मसाला बनाया जाता ...........मीठी सौंठ बनती ...

और ..होली की शाम को .....जब होली दहन होता ....तो गज़ब का हुडदंग मचता था .....शोर शराबे के बीच नयी फसल गेंहू के बाल भूने जाते ......कई घरों में भी होली जलाने की परम्परा थी ..जो आज भी कायम है ...

हमारे घर में भी होली जलती थी ..जिसे चौराहे की होली से  अग्नि लाकर  ही जलाया जाता था ..... घर में महिलायें और बच्चे होली के गीत भी गुनगुनाते और गेंहू की बाल भी भूनते जाते ...........सभी पुरुष बाहर  की होली से गेंहू के बाल भून कर लाते थे ........

उसके बाद शुरू होता गेंहू के भुने जौ सभी को देकर बड़ों के चरण स्पर्श ...छोटो को आशीर्वाद देने का सिलसिला .......
एक -दूसरे के गले मिलने का सिलसिला .......सुबह तक यही सिलसिला जारी रहता ........

एक मेला सा लग जाता .........उत्साह देखते ही बनता था .........

और पौं -फटते ही रंगों की बौछार ..अबीर-गुलाल ,मस्तक पर चन्दन ...और पिचकारी की रंगीन धार ...,.....,....

टेसू के फूल रात को भिगोये जाते .....जो त्वचा के लिए लाभदायक होते ..

महिलायें सुबह ही ...अपने बनाये खाद्य पदार्थो से थाल  सजा कर .....दक कर रख देती ...दही बड़े कई प्लेट या बाउल में बन कर तैयार रहते ......कोई भी आये ..बिना खाए ना जाए .......
जिसकी जो मर्ज़ी हो जितनी मर्ज़ी हो खाए ...होली खेले और जब मर्ज़ी जाए ..........

यही सिलसिला दो या तीन बजे तक चलता ...खूब हुडदंग मचता .....धमाल होता ..सब सारे दुःख - सुख .....बैर -भाव ..सब भूल बस होली के रंग में रंग जाते ..............

धीरे -धीरे ....उत्साह कम होता ...जाता ..तो ..सफाई शुरू होजाती ......धुलाई होती ....एक -एक कर नहाना शुरू हो जाता  ..सब थकान मिटाना शुरू करते ...और एक सप्ताह तक ...महिलाओं का होली मिलन ..चलता रहता था ...सबके घरों में जा -जाकर ...गुझिया का स्वाद लिया जाता .....गप -शप होती ...........और महिला मण्डली दूसरे घर की राह लेती 

सब ..उत्साह में रहते थे ...न किसी का बजट गडबडाता ..न किसी का स्वास्थय ..........

खूब खाते और धमाल मचाते .......

आज भी होली .मनाई जाती है ........लेकिन ...सिर्फ औपचारिकता रह गयी है ........समयाभाव ,महंगाई ,बजट,और स्वास्थ के चलते बहुत सी खाने की चीज़ें अपना अस्तित्व ही खो चुकी हैं ....... कुछ परम्परा गत वस्तुएं हैं ......जिन्हें बनाना  स्वाद से ज़्यादा  ..बाध्यता है ......

और बाज़ार से सामान खरीद कर त्योहार की औपचारिकता पूरी कर ली जाती है ...............

बहुत से लोग तो इस दिन ...घर में बंद होकर रहना पसंद करते हैं ........कुछ लोग सिर्फ ...गुलाल से खेलना .पसंद करते हैं .........रंगों का मिलावटी होना भी लोगो को ..उदासीन बना रहा है ............कई लोगो को .....त्वचा की समस्या हो जाती है ......आज के दिन कई लोग अपनी दुश्मनी का बदला लेकर ..इस सुंदर त्योहार की शालीनता को नष्ट  कर देते हैं ....

कुल मिला कर आज ये रंगीन त्योहार अपनी पहचान खोने की कगार पर है ........सम्बन्ध औपचारिक हो रहे हैं ...त्योहार कैसे अनौपचारिक  रह सकते हैं .........???

आज भी हर होली पर वही सब सामने आ जाता है ......

पर फिर ..मन को समझाना पड़ता है ..अरे ..हर समय एक सा  नहीं रहता .........समय के सब बदलता है तो ---------तौर - तरीके क्यों नहीं ....??..लोगो का उत्साह क्यों नहीं .....???.........

और फिर याद आता है .......

अरे हाँ परिवर्तन तो संसार का नियम है ...और अगर वो सब बीत नहीं जाता ...तो में ये सब कैसे लिख रही होती ..इन अनमोल यादों में कैसे खोती ..............आप लोग भी कहीं न कहीं सहमत होंगे और शायद कुछ यादें आपको भी विचलित कर दे ..

.परन्तु .......परिवर्तन की स्थिरता को सम्मान देते हुए .....बस यही कहूँगी .....मित्रों ................आप सभी को होली की बहुत सारी हार्दिक शुभकामनाएं ........अच्छी और सुरक्षित होली खेलें ........
.

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012




---तुम -----


१-बिना तुम्हारे
 
तपिश अकुलाये

 
दिल की बात

 
२-शूल बन के


चुभन दे रही जो

याद है तेरी


३-आज आओगे


दस्तक दिल पर


लम्हा दे रहा .

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

‎"एक छोटी सी लव स्टोरी जो गठबंधन में बदल गयी "

खूबसूरत , चंचल , मधुर मुस्कान की स्वामिनी अंजू से मेरी तीसरी मुलाकात मुकेश मानव जी के द्वारा आयोजित ' प्रेम कविता महोत्सव ' पर हुई , साथ में अंजू के पति विवेक भी थे , पति की उपस्थिति में अंजू ने जिस तरह थोडा शरमातें हुए अपनी प्रेम कविताएँ सुनाई , उससे उस मफिल में चार चाँद लग गएँ जो महफ़िल सिर्फ प्रेम कवितों के लिए सजाई गयी थी !
     आयोजन से मैं अंजू के साथ ही वापस आई , प्रेम कविताओं की बातें करते- करते अंजू और विवेक ने बताया की उनकी लव मैरिज हुई थी , इतना जानना था की फिर कब , कैसे , क्या हुआ , किसने किसको पहले प्रपोज़ किया ....ये सब जानने के लिए मैं उत्सुक हो गयी , विवेक तो थोडा शरमा रहे थे और सारी बातों को मजाक में ले रहे थे , उन्होंने मजाक करते हुए कहा की " मुझे नहीं मालूम था की इससे प्यार होने के बाद इसकी बोरिंग कविताओं को झेलना पडेगा " लेकिन अंजू ने गंभीरता से जो थोडा बहुत अपनी प्रेम कहानी के बारे में बताया वो कुछ इस तरह थी .......
             अंजू और विवेक एक ही कॉलेज में थे , अक्सर किसी न किसी बात को लेकर दोनों आपस में झगड़ते रहते थे इसके बावजूद भी दोनों एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानते थे , जो कभी कभी एक अच्छे दोस्त भी एक दूसरे के बारे में नहीं जानते , समय बीतता गया , करीब दो वर्ष बाद विवेक ने ये महसूस किया की उसे अंजू से प्यार है क्योकि कभी -कभी अंजू जब कॉलेज नहीं आती थी तो वो उसके बिना खुद को अकेला महसूस करता था | विवेक ने ही पहले अंजू को प्रपोज़ किया , कहीं न कहीं अंजू के दिल में भी विवेक के लिए प्यार था वो मन ही मन इस बात को स्वीकार कर चुकी थी लेकिन विवेक से कह नहीं पाती थी , अंजू ने विवेक का प्रपोज़ल स्वीकार कर लिया लेकिन परिवार वालों की मर्ज़ी के बगैर वो शादी नहीं कर सकती थी और विवेक से प्यार की बात भी अपने परिवार के सामने रखने में वो हिचकिचा रही थी , अंजू की इस बात पर विवेक थोडा नाराज़ भी हुआ क्योकि विवेक अपने माता-पिता से अंजू के बारे में बात कर चुका था | दोनों ही अरेंज्ड मैरिज के पक्षधर थे और अपने संस्कारों के चलते परिवारवालों की रजामंदी के बगैर कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे |
     धीरे धीरे वक़्त गुजरता रहा , कॉलेज की पढाई ख़त्म करके दोनों अलग अलग जॉब करने लगे थे , कई बार दोनों ने यही सोचा की उन दोनों की शादी शायद संभव नहीं है लेकिन ईश्वर ने उन दोनों का गठबंधन तय कर रखा था तभी तो कुछ वर्ष बाद जहाँ विवेक जॉब करता था वही अंजू की भी जॉब लगी और फिर एक बार दोनों का आमना -सामना हुआ , भूले तो वो कभी भी एक दूसरे को नहीं थे एक बार फिर एक दूसरे को सामने पाकर मन में छुपी प्यार की भावनाएं एक बार फिर बाहर आ गयी |
   आखिर में विवेक ने ही हिम्मत करके अंजू के माता-पिता से अपनी शादी की बातचीत की , दोनों ब्रह्मिण परिवार से थे , दिल्ली में ही पले बढे थे इसलिए उनके माता पिता को भी उनकी शादी पर कोई आपत्ति नहीं हुई , सात साल के अफेयर के बाद दोनों की शादी खूब धूम -धाम से हुई , सबसे बड़ी बात की रिश्तेदारों और पड़ोसियों की निगाह में ये एक अरेंज्ड मैरिज ही थी |
      शादी के सोलह साल हो गएँ हैं और दोनों एक दूसरे के साथ बहुत खुश हैं !
विवेक गाडी ड्राइव कर रहे थे और बगल में बैठी अंजू हस्ती , मुस्कुराती हुई अपनी प्रेम कहानी मुझे सुना रही थी उसकी आँखों में आज भी विवेक के लिए वही प्रेम मुझे दिख रहा था जो कभी शादी के पहले हुआ करता होगा .......

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012


बेरोजगार बेटे का दर्द ------

माँ करना तू सब्र ज़रा सा ,अपना भी दिन आयेगा


मुरझाया चेहरा तुम्हारा , जब एक दिन खिल जाएगा

पहला दिन मेरे जीवन का ,जब में ऑफिस जाउंगा


पेंट शर्ट और टाई लगा कर ,थोड़ा सा इतराऊंगा ........

भरपूर नज़र से जब देखोगी ,माँ में शरमा जाउंगा


स्वप्न तुम्हारी आँखों का माँ ,सच में 'सच' कर पाउँगा .....

माँ निराश ना होना तुम बस ,आशा दीप जला रखना


परिस्थितियों के तूफानों से ,उसको ज़रा बचा रखना .....

'नाकारा' ना मुझे समझना ,तेरा दर्द समझता हूँ


माथे पर जो खींची लकीरें ,उनका मर्म समझता हूँ ......

पापा को भी कहना माँ तुम ,में सपूत कहलाउंगा


नाम करूंगा रोशन उनका , कालिख नहीं लगाउंगा

प्यार और विश्वास चाहिए ,तेरा आशीर्वाद चाहिए


आँचल में छिपा ले माँ तू , मुझको तेरा साथ चाहिए ......

स्त्री

कभी कभी 'मन'
बड़ा व्याकुल हो जाता है,
संशय के बादल, घने
और घने हो जाते हैं,
समझ में नहीं आता,
स्त्री होने का दंभ भरूँ,
'या' अफ़सोस करूँ...

कितना अच्छा हो,
अपने सारे एहसास,
अपने अंतस में समेट लूँ,
और पलकों की कोरों से,
एक आँसूं भी न बहने पाए....

यही तो है,'एक'
स्त्री की गरिमा,
'या शायद'
उसके, महान होने का
खामियाजा भी...

क्यूँ एक पुरुष में
स्त्रियोचित गुण आ जाये,
तो वो ऋषितुल्य हो जाता है,
'वहीँ'
एक स्त्री में पुरुषोचित
गुण आ जाये तो 'वो'
'कुलटा'

विचारों की तीव्रता से,
मस्तिस्क झनझना उठता है,
दिल बैठने लगता है,
डर लगता है
ये भीतर का 'कोलाहाल'
कहीं बाहर न आ जाये,
और मैं भी न कहलाऊं
'कुलटा'.....!!अनु!!

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जब कभी मन उद्वेलित होता है,
'तब'
जी करता है की 'चीखूँ'
जोर से 'चिल्लाऊं'
जार जार रोऊँ ..
'लेकिन फिर'
आड़े आ जाती है
'वही'
स्त्री होने की गरिमा ..
लोग क्या कहेंगे?
पडोसी क्या सोचेंगे?

ठूंश लेती हूँ,
अपना ही दुपट्टा,
अपने मुंह में,
'ताकि'
घुट कर रह जाये
मेरी आवाज़,
मेरे ही गले में...

और घोंट देती हूँ,
अपने ही हाथों
'गला'
अपने 'स्वाभिमान' का.... !!अनु!!