बुधवार, 23 नवंबर 2011

राधा का गीत


मुझे दोष मत देना, मोहन,
   मुज पर रोष  न करना !
दिवस जलाता , निशा रुलाती,
  मन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू   , पर  नहीं थकाना
 जलती हू पर होश न हरना     
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !
इसी तपन ने आखे खोली
 इसी जलन ने भर दी जोली
जब तुम बोले मौन रही मै
 जब मौन हुए तुम , मै बोली
सहना सबसे कठीन मौन को
 कहना है , खामोश न करना !
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !

बुधवार, 16 नवंबर 2011

आपके जिगर से दूर न हो जाए कहीं आपके जिगर का टुकड़ा

आजकल टीन एज   बच्चों की आत्महत्या की ख़बरें आम बात हो गयीं हैं ! टीवी और समाचार पत्रों में आये दिन ये ख़बरें हम पढतें सुनतें हैं ! फिर एक दुसरे से और खुद से प्रश्न करते हैं ......
उसने ऐसा क्यों किया ...?
ऐसा करने से पहले उसने एक बार अपने माता-पिता के बारे में क्यों नहीं सोचा ...?
उसे किसी से किसी तरह की परेशानी थी तो उसने घर में किसी से उसका जिक्र क्यों नहीं किया ..?
दोषी कौन ...?
ये सारे प्रश्न वाजिब भी हैं लेकिन ऐसी स्थिति आई क्यों , अभिवावकों को इस प्रश्न पर गंभीरता से सोचने की जरुरत है ! कहीं माँ-बाप बच्चों से जरुरत से ज्यादा आकंछायें और उम्मीद तो नहीं लगा बैठते और पूरा न हो पाने पर बच्चे को उसके लिए दोषी तो नहीं ठहराते ..?
आज एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्प्रधा सब पर हावी हो रही है ! इसका असर मासूम बचपन पर भी पड़ा है ! माँ-बाप पड़ोसियों और अपने मित्रों के बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते देख , उसका उदहारण अपने बच्चे को देकर अनजाने में कहीं न कहीं व्यंग करके अपने ही बच्चे के दिल को चोट पहुचातें हैं ! अगर इम्तहान में बच्चे के अंक कम आतें हैं उसके लिए भी उसे इतना दोषी ठहराया जाता है जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो ! अभिवावकों को इन सब बातों से ऊपर उठाना होगा और ये समझना होगा की उनके फूल से , जिगर के टुकड़े उनका  स्टेटस सिंबल मात्र नहीं हैं !

बच्चे में हार्मोनल चेंजेज़
आमतौर पर लड़कियों में 8  वर्ष और लड़कों में 12  वर्ष की आयु में  हार्मोनल चेंजेज़ आने लगतें हैं ! अपने  में अचानक आये शारीरिक और निजी बदलाव के कारन बच्चा चिडचिडा और विद्रोही हो जाता है ! मन में इस बदलाव से जुड़े प्रश्नों का आना भी स्वाभाविक है ! ऐसे में अगर अभिवावक का व्यवहार बच्चे से मित्रता पूर्वक नहीं है तो वो या तो अकेले ही घुटता रहेगा या फिर अपने मित्रों से ये बातें शेयर करेगा ! ऐसे में मित्र को ही अपना सबसे बड़ा करीबी मानने लगेगा ! अभिवकों को चाहिए की अपने बच्चे के अच्छे मित्र बने जिससे वो किसी भी तरह की बात आपसे बेहिचक शेयर कर सके ! स्कूल और कॉलेज में बच्चे को सभी मित्र ऐसे नहीं मिलेंगें को वो उसे सही सलाह ही दें ! कुछ मित्र बच्चे को भ्रमित भी कर सकतें हैं जिससे बच्चा किसी बुरी लत का शिकार भी हो सकता है !

बच्चों को समय दें
 आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय की कमीं सभी के पास है ! माता-पिता अगर दोनों नौकरीपेशा वालें हैं तो बच्चों के लिए वक़्त निकलना और भी मुश्किल हो जाता है ! फिर भी जिगर के टुकड़ों के जीवन से बढ़कर तो कुछ नहीं है ! कितनी भी व्यस्तता हो बच्चों को समय जरुर दें और ये समय आप रात के खाने के वक़्त और टीवी देखते हुए भी दे सकतें हैं ! उनसे मित्रतापूर्वक बात करें और उनकी पूरे दिन की गतिविधियों की जानकारी लें ! उनके कितने दोस्त हैं उनके भी रहन-सहन और विचारों की जानकारी लें ! उचित-अनुचित बहुत प्यार से बच्चे को समझाएं ! दिन में भी एक दो बार बच्चे को फ़ोन करके उनसे उनका हाल-चाल जरुर पूछें !
स्पर्श का महत्व
 बच्चा कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए उसे कभी कभी प्यार से स्पर्श जरुर करिए ! अगर बेटा है तो कभी प्यार से उसका सर अपनी गोद में रखें उसके बालों में उंगलिया फिराएं इसी तरह बेटी को भी कभी अचानक ही गले लगायें , प्यार से उसके माथे पर किस करें ! उन्हें ये अहसास दिलाइये की वो कितने ख़ास हैं आपके लिए ! कभी-कभी दिल में बहुत प्यार होते हुए भी अभिवावक बच्चों से व्यक्त नहीं करते हैं ! जब भी वक़्त मिले अपने प्यार में बच्चे को भिगों दीजिये !
यकीन मानिये ये सब सावधानिया अभिवावक बरतेंगें तो कभी भी उनके जिगर के टुकड़े उनसे दूर जाने की भी नहीं सोचेंगें भी नहीं !
(शोभा)

शनिवार, 12 नवंबर 2011

एक अबोध बचपन


एक अबोध बचपन

एक धीमा बचपन
जो खुद में ढूंढता है
एक मासूम बच्चा
जिसका कोई उत्तर नहीं ...
मन का वो बच्चा जो
भागता है ,
नदी के बहाव के साथ साथ
कहीं दूर तक
बिन सोचे कि
ये कौन दिशा जाएगी
और वो दौड़ता
चला गया
साइकिल के पीछे
अपने कदमो की
गति के साथ
बिन अपने कदमो की
मिथ्या को पहचाने .....

बच्चे का मुखौटा बदला
उसने अपने 'स्व ' से
खिसकना बंद किया
ढांचा स्थिर हुआ
अचानक उसके चेहरे से
एक अजनबी चेहरा
प्रगट हुआ ...
जो क्रूर था ..अपनों
और गैरों के लिए
कुछ कठोर ,कुछ निर्दयी
कुछ अनजान ,कुछ परेशान सा
अपने ही वक़्त से
उसके मन का सरोवर
उसका ही कठोर ,
छिपा हुआ जलपुंज उसका
अपने ही
दर्प से जल रहा था
...

बच्चे का मुखौटा
फिर से बदला
वो अपने 'स्व 'के साथ
फिर से स्थिर हुआ
नयनो में अब मौन
की भाषा थी ....
आहट ,जर्जर ह्रदय था
उसने जीवन में ..
तब उसने
संतोष पाने का संकल्प किया
जब अपनों ने भी साथ छोड़ दिया
किसने उसे सुना ?
किस आवाज़ ने उसका उत्तर दिया ?
वो चीखा ...और किसी को
इसका पता नहीं चला ..
अकेलपन का भयानक चक्र
जब ऊपर उठा
तब....उसकी वापिसी हुई
एक अबोध बचपन
जो खुद में ढूंढता है
एक मासूम बच्चा
हमेशा ही अपने भीतर
एक अबोध बचपन .......


अनु ...

"दहेज दोषावली"

(३)

१)दहेज सु भलो सर्प बिस प्राण जाय इक बार..
दहेज बिस सुं मुइ कन्या जीते जी कइ बार..


२)वा नीचन तें नीच है, जो दहेज मांगन जाय.
उनते भी वा नीच है जो कन्या वासो परणाय..


३)धन मांगै निरस भये,रस बिनु उख मै काठ
काथ सु कन्या ब्याहदी, सुखी जीवन-बाट..


४)धिक धिक ! दहेजी दानवा! कितनी बलि तू खाय.
सौ सम रहिं न बिटिया सब कि तोहर भूख मिटाय


५) पोथा पढि पढि वर मुआ आयी न बुध्धि तोय
दुल्हन लाय दहेज बिनु सौ वर उत्त्म होय.