रविवार, 31 जुलाई 2011

**** बचपन क़ी सहेली ****

 

आज फिर ख्वाब में वो आई ...
सहेली थी मेरे बचपन की !

वो पलाश के पेड़ो से घिरे ..
मुझे मेरे स्कूल की याद आई !

वो स्कूल का मध्यांतर ...
और वो मस्ती याद आई !

वो सहेलियों संग बैठना ..
वो रूठना मनाना ...

सुन्दर चित्रों से वो ...
पेन्सिल के डिब्बे को सजाना ...

चुपके से बगिया से फूल चुराना ..
फिर वो माली की फटकार याद आई!

आज भी वो सहेली ..
बहुत याद आती है ..
ख्वाबों में मेरे वो अक्सर आती है !

काश तुम मिलती ,साथ बैठते...
बचपन के वो पल...
फिर से हम जी लेते !!

आज फिर ख्वाब ........

!!!! शोभा !!!!

रविवार, 24 जुलाई 2011

खाली सा लगता है



क्यों सब कुछ खाली सा लगता है..
आंखे  भरी है आँसू ओ से फिर भी आँखो में शुन्यता
है ,

दिल है दर्द और ख़ुशी यो से भरा..
फिर भी दिल वीरान लगता है..

बाहों में जुल रही है कितनों की बाते..
जिसे गले लगाकर हम फिरते है पूरा दिन..
फिर भी एक अकेलापन सा लगता है..

जब भी तलाशती हुं खुद को..कभी अकेले में..
तो वो अकेलापन जैसे घुटन सा लगता है..

छोड़ दिया है अब खुद की परेशानियों को सोचना..
दिन रात जैसे जिंदगी का सिर्फ आना जाना लगता है..

नीता कोटेचा..

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

एक बार ओ मायड़ म्हारी..थारे पास बुला ले..!!

माँ ..
आवे हे जद
ओ सावण मास
मनडो म्हारो होवे
घणो उदास..!!
आंख्या राह निहारे
हियंडो थाने पुकारे
एक बार ओ
मायड़ म्हारी..
थारे पास बुला ले..!!
सावणीये री तीज आई...
आंख्या म्हारी यूँ भरी..
ज्यूँ भरे सावण में
गाँव री तलाई..!!
मायड़ म्हारी!!
काई बताऊँ थाने..
अवलु थारी कत्ती आई..!!
कित्ती सोवणी लागती
वा मेहँदी भरी कलाई
रंग बिरंगी चुडिया
भर भर के सजाई..!!
लहराता लहरिया सावण में
मांडता हींडा बागां में..
झूलती सहेल्यां साथ
आ लाडेसर थारी जाई..!!
आंवतो राखडली रो तींवार
भांव्तो बीराजी रो लाड
हरख कोड में आगे लारे
घुमती भुजाई..!!
ओ बीराजी म्हाने
आप री अवलु घणी आई..!!

भादरिये री तीजडली री
जोउं बाट बारे मास...
सिंजारे में माँ बनावती
पकवान बड़ा ही खास..!!
तीजडली रो सूरज उगतो..
बनता सातुडा अपार
कजली पूजता आपा सगळा..
तले री पाळ में खोस
नीमडी-बोरडी री डाळ..!!
जवारा री पूजा करने
पिंडा पूजता..
दीपक जलायणे तले में..
सोनो..रूपों..चुन्दडी निरखता..
बाबोसा बेठने डागोल
बाट चान्दलिये री जोंवता..
आंवतो चांदो..खुशिया लान्वतो..
हरख सगळा रो मन में ना मांव्तो
अरग दे पिंडा परासता..
बातां सगळी आवे याद
ओ मायड़ म्हारी..
कई बताऊँ थाने हिन्वडे रो हाल..!!
आ तीजडली आप रे सागे
यादां घणी लाइ..
ओ बाबोसा म्हारा..म्हाने
आप री अवलु घणी आई..!!!कविता राठी..

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

मन में उठती है रोज़ ,एक उम्मीद एक नई आशा ,
दिन ढलने से पहले वक़्त पलट देता है पासा ,
वक़्त दे जाता है मौत ,हम रह जाते हैं मौन ,
बस यही सोचकर कि,
एक दिन मन उम्मीद कि विजय पताका फहराएगा ,
और उस दिन हम जीत जायेंगे ,
और वक़्त हमसे हार जाएगा ,
वक़्त से जीतने का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है ,
अब भी मुझे अपने मन कि हार से इनकार है ,
मन में उठती है रोज़ एक उम्मीद एक नई आशा ****
दिल के गहरे सागर में ,
बस ठहराव की कमी है ,
कभी सवालों क तूफां है ,
कभी विचारों की सुनामी ,
दुनिया के झमेले ,हर वक़्त आँखों में नमी है ,
दिल के गहरे सागर में ...........
अहसास दिल के बेअसर हों जैसे ,
ना गम में उदास होता है ,
ना खुशियों में ख़ुशी है ,
कहने को तो ज़िंदा भी हैं हम ,
बस जिंदगी की कमी है ,
दिल के गहरे सागर में *बस ठहराव की कमी है **
खेल कर जज्बातों से मेरे ,ज़ख्म नए हर वक़्त दे गया ,,
सोचा था अब ना आयेंगे दिल की बातों में ,
ना पड़ेंगे जज्बातों में ,पर इस बार भी ये दिल पस्त हो गया ,
आज फिर कोई अपना हमें शिकस्त दे गया
ना समझ सकेगा चलन बेदर्द ज़माने का ,
गर संभालना भी चाहो तो वक़्त भी नहीं ,
लेगा कहाँ तक जाकर दम ,ए जिंदगी के मुसाफिर ,
इस राह तो कोई दरख्त भी नहीं**

मुस्कराहट मेरी.....!!!

सच्चा संगी..सच्चा साथी...
पल पल मेरा साथ निभाती...
मुस्कराहट मेरी...!!!


अहसासों की प्यास बुझा कर
जीने की उम्मीद जगाती..,
आंसुओ के घूंट पी कर..
जलन सीने की मिटाती
मुस्कराहट मेरी..!


मौसम के साथ चलकर
ठण्ड धुप और बारिश सहकर
जिन्दगी के आंधी तुफानो
से मुझे है बचाती..
मुस्कराहट मेरी..!!


सब कुछ सहकर
हंसती रहकर
है मुझे भी हंसाती
जीने की उम्मीद जगाती
मुस्कराहट मेरी..!!


ना गिला इसे किसी से..
ना कभी किसी से शिकवा..
मुझमे रह कर..मेरी बनकर..
पल पल मेरा साथ निभाती..
मुस्कराहट मेरी..!!!..कविता..

सोमवार, 18 जुलाई 2011

आभासी दुनिया से सच की जमीन पर कुछ पल

मुझे फेसबुक छोड़ने का गम कभी नहीं हुआ, मगर अपने ग्रुप से दूर होना इतना पीड़ादायी था कि तीन दिन तक गुमसुम रही। जोशीजी समझ गए, चौथे दिन सुबह बुलाकर आ सखी के ही रूप रंग का सुंदर ब्लॉग दिखाया। इसे देखकर मैं बच्चों कि तरह उछल पड़ी। मैं भाग्यशाली हूं कि सखियां मुझ पर विशवास करके इसमें शरीक भी हो रही है।
           हां, इतनी भाग्यशाली कि उसी आभासी दुनिया से एक सखी निकल कर  बड़े प्रेम से मुझसे मिलने मेरे घर आती है। यकीन नहीं होता। सेरोनिका सीमा व्यास जिससे मैं पहले कहीं नहीं मिली, का आने के पहले फोन आया कि बीकानेर आएगी कुलदेवी दर्शन को तो मिलने आएगी। सो मैं घर कि सफाई में लग गई। मेरे घर में यूं तो आम घरों कि तरह रोज ही  सफाई होती है जैसे फ्रिज में रखी मिठाई की सफाई, ठंडी हुई बोतलों से पानी कि सफाई, व्‍यवस्थित रखी चीजों कि सफाई, पर अभी तो सखी आ रही थी सो सफाई थोड़ी भिन्न थी, अगले रोज फोन आया हम बीकानेर पहुच चुके हैं,एड्रेस बताएं, मैंने कहा मौसम विभाग (घर के पास ) तक आ जाएं सामने से जोशी जी को लेने  भेज दूंगी। 
रायते की खातिर कॉलोनी की डेयरी से दही लाने जोशीजी को भेजा। कहा "जल्‍दी आना"। एक परफेक्‍ट पति की तरह जोशीजी जल्‍दी नहीं आए, पर सीमाजी का फोन आ गया कि "हम पहुंच गए हैं" आखिर कान्‍हे को अकेला छोड़ मैं ही सामने लेने पहुंची। देखा उनकी कार काफी दूर है और चिलचिलाती धूप और उमस भी तेज है।
पसीना पोंछती जोशीजी को कोस रही थी, तभी सीमाजी की कार को पार करके अपनी ओर आते हुए एक काली मोटरसाइकिल पर काला टीशर्ट पहने,  बैग को कंधे से कमर की ओर टेढ़ा डाले, एक गोरा युवक आ रहा है, बड़े इत्‍मीनान से गाड़ी चलाते हुए।
 कार धुंधली पड़ गई
युवक पर नजरें गड़ गई
थोड़ा और करीब आने पर
खीज से भर गई
आइला ये तो जोशीजी हैं।
देखकर लगा मानो उन्‍होंने कंधों पर गृहस्‍थी के बोझ को टेढ़ा लटका रखा है। खीज के साथ खुद पर आश्‍चर्य हो रहा था सोच कर कि नैन मटके कि बचपनी आदत गई नहीं क्या ?
अब कार दिखने लगी थी, हमने इशारा किया शायद माजरा भाँप लिया गया, कार हमारे पीछे आ रही थी घर के आगे पहले सीमा जी के दो  प्यारे बच्चो (एक बेटा और एक बेटी )को देखा फिर एक प्यारी मुस्कान वाली गोरी चिट्टी,  भूरी ,नहीं, नहीं शायद कत्थई आँखों वाली खूबसूरत बड़े आकार कि महिला को एकटक देख रही थी कि मेरे पास आकर प्यार से कहा "आपकी बिंदी खिसक गयी है "और उसे खुद ही हाथ बढा कर ठीक किया ,उसके बाद हम सहज थे ऐसे जैसे बरसो से एक दूसरे को जानते हो गर्मी में आये थे सब कोल्ड ड्रिंक देने पर सीमा जी ने मना कर दिया, जोशी जी ने मौके को भुनाया, रसोई में जाकर कोल्‍ड कॉफी खुद बनाकर लाए (उनको यह शौक काफी समय से चर्राया हुआ है)। बचे हुए दूध की थैली यूं ही रख दी। इसी बीच सीमाजी ने कान्‍हा से कहा कि तुम बड़े प्‍यारे हो मैं तुम्‍हे साथ ले जाउंगी। कान्‍हा ने पूछा वापस, तो सीमाजी के बच्‍चों ने चुटकी ली कि अरे तुम्‍हे हमारी मम्‍मी फेसबुक से वापस भेज देंगी।
            कुछ देर बाद बच्‍चों, पतियों और सखियों के अलग अलग ग्रुप बन गए। फिर हमने की असली वाली चुगलियां। आहा चुगलियां वो जो दिल को हल्‍का कर गई और हाजमे को दुरुस्‍त। खाना तैयार था, गर्म ताजा खिलाने की गरज से पूरियां तलने पहुंची। तो सीमाजी भी साथ में आ गई। और फिर हम दोनों मिलकर तल रही थीं काफी कुछ। सबने खाना खाया। बच्‍चों और सखियों के यहां भी अलग अलग ग्रुप बने। मीनू था - राजस्‍थान की प्रसिद्ध कैर सांगरी की सब्‍जी और फोगले का रायता (यह रेगिस्‍तानी खींप पर उगने वाले फूल होते हैं, इन्‍हें पानी में उबालकर दही में मिलाया जाता है), आलू की सब्‍जी, पूरियों के साथ बीकानेर के बीके स्‍कूल के कचौरी समोसे, भुजिया और दाल की बर्फियां। बच्‍चों को सबकुछ पसंद आया तो सीमाजी को केवल फोगले का रायता भाया। दीगर बात थी कि कमजोर स्‍वास्‍थ्‍य का असर कहीं से भी सीमाजी के व्‍यवहार में नजर नहीं आया। अन्‍यथा महिलाएं अपने स्‍वास्‍थ्‍य को अनदेखा कर केवल चिड़चिड़ाती नजर आती हैं।
           खाने के बाद सब समेट जोशीजी और व्‍यासजी की बातों के बीच हम भी धमक गईं। जोशीजी के व्‍यासजी की कुण्‍डली देखते समय सीमाजी व्‍यासजी की जो खिंचाई कर रही थी, उससे सभी के हंसते हंसते पेट में बल पड़ गए, सिवाय व्‍यासजी के। थोड़ी देर में व्‍यासजी ने चलने का आह्वाहन किया तो फिर मन भारी हो गया। एक बार फिर सखी से बिछड़ने की घड़ी आ रही थी। एक-दूसरे से फिर मिलने का वादा किया। सखी सीमा की लाई चॉकलेट ने कान्‍हा की जैसे लॉटरी लगा दी। मगर जब उन्‍होंने निकलने से पहले कान्‍हा से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह चार कदम पीछे हट गया। उसे सीमाजी की ले जाने वाली बात याद आ गई थी। फिर भी प्‍यार करते हुए आगे बढ़ गई। एक दूसरे की आंखों में झांकते हुए कि "सखी कहीं भूल तो न जाओगी"।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

बस एक ख्‍वाब और...

ना ख़त्म हुआ उनकी मंजिलों का सफ़र ,,
इंतज़ार की हमारे इन्तेहाँ हो गई*
हर मंजिल पर पहुँचने के बाद 
वो कहते हैं ''बस एक ख्वाब और''

मैं एक स्त्री हूँ

- स्त्री जीवन के विभिन्न चरण

...जन्म....


लो जी मेरा जन्म हुआ..
माहौल कहीं कुछ ग़मगीन हुआ..
किसी ने कहा लक्ष्मी जी आई हैं ...
खुशियों की सौगात साथ लायी हैं !
घर में थी इक बूढी माता ...
तिरछी निगाह करके उन्होंने माँ को डांटा !
माँ की कोख को कोसने लगी ...
मुझे मेरे पिता के सिर का बोझ कहने लगी !

.....बचपन.....

अब कुछ बड़ी हो गयी हूँ ...
कुछ-कुछ बातें अब समझने लगी हूँ..
माँ मुझे धूप में खेलने नहीं देती...
काली हो जाओगी , फिर शादी नहीं होगी ये कहती...
भइया तो दिन भर अकेला घूमता..
मुझे मेरी माँ ने कभी न अकेला छोड़ा...
रहते थे एक सज्जन पड़ोस में...
इक दिन माँ ने मुझे देखा उनकी गोद में...
घर लाकर मुझे इक थप्पड़ लगाया..
बाद में मुझे फिर गले से लगाया...
मेरी नाम आँखों ने माँ से प्रश्न किया..
मेरी आँखों को मेरी माँ ने समझ लिया..
गंदे हैं वो बेटा , मुझसे माँ ने ये कहा..
नहीं समझी मैं उनकी बात..
पर माँ पर था मुझे पूरा विश्वास !


.. युवा वस्था ....

अब मैं यौवन की देहलीज पे हूँ..
अच्छा-बुरा बहुत कुछ जान गयी हूँ..
कुछ अरमान हैं दिल में, मन ही मन कुछ नया करने की सोच रही हूँ...
माँ ने सिखाई कढाई-बुनाई ...
और सिखाया पकवान बनाना ...
तुम तो हो पराया धन तुम्हे है दूजे घर जाना...
करती गयी मैं सब उनके मन की..
दबाती गयी इच्छाएं अपने मन की !



...... विदाई ....

चलो ये भी घडी अब आई ...
होने लगी अब मेरी विदाई ...
बचपन से सुनती आई थी...
जिस 'अपने' घर के बारे में....
चली हूँ आज उस 'अपने' घर में..
सासू जी को मैंने माँ माना ...
ससुर जी को मैंने पिता माना ...
देवर लगा मुझे प्यारा भाई जैसा ..
ननद को मैंने बहन माना ...
पति को मैंने परमेश्वर माना ...
तन-मन-धन सब उन पर वारा !



......मातृत्व .....

सबसे सुखद घड़ी अब आई ....
आँचल में मेरे एक गुड़िया आई ....
फूली नहीं समाई मैं उसे देखकर...
ममता क्या होती है, जान गयी उसे पाकर...
सोये हुए अरमान एक बार फिर जागे .......
संकल्प लिया मन में, जाने दूँगी उसे बहुत आगे ...
सच हुआ मेरा सपना अब तो...
कड़ी है अपने पैरों पर अब वो ....



.... प्रौढ़ावस्था ...

उम्र कुछ ढलने लगी अब तो ...
कुछ अकेलापन भी लगने लगा अब तो ...
आँखें भी कुछ धुंधला गयी हैं ..
झुर्रियां भी कुछ चेहरे पे आ गयी हैं...
जो कभी पास थे मेरे, वो अब दूर होने लगे हैं ...
तनहाइयों में मुझे अकेला वो सब छोड़ने लगे हैं...
हद तो तब हो गयी जब मैंने ये सुना...
जिन के लिए न्योछावर तन-मन किया....
उन्होंने ही मुझसे ये प्रश्न किया ..
की तुमने मेरे लिए क्या है किया...
थक गयी हूँ, हार गयी हूँ मैं अब...
बहुत ही निराश हो गयी हूँ मैं अब...
मुड जो देखती हूँ पीछे ..
मजबूर हो जाती हूँ ये सोचने पर ..
कौन थी मैं?कौन हूँ मैं?क्या है मेरा वजूद?
यही सोच-सोच कर अब इस दुनिया से चली बहुत दूर !



... शोभा

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

मृगमरीचिका नहीं हैं खुशियाँ

सफ़र है कठिन

आसान इसे तुम्हें स्वयं ही करना होगा
इन् बाधाओं से तुम्हें अकेले ही लड़ना होगा
न बनो इतने लाचार
ढेरो खुशियाँ फूल बनी बिखरी हैं राहों में
कुछ चुनकर इनमें से ..
महका लो अपना जीवन
कर लो अपने अधूरे सपने को साकार
खता नहीं है कोई ,फूलों से सुगंध चुराना ...
और बादल का इक टुकड़ा अपनाकर उसमें भीग जाना
मृगमरीचिका नहीं हैं खुशियाँ
इनको हासिल कर ..
अपने जीवन के हर पल को ..
जी भरकर जी लो .......




शोभा

मुझे एक याद आती है

भोर की प्रथम बेला में
क्षितिज की नारंगी किरणे
जब धरा को सहलाती है
 मुझे एक याद आती है

जेठ ,अषाढ़ की तपन के बाद
जब सावन की ऋतु आती है
घनघोर बदरिया छाती है
मुझे एक याद आती है

पतझड़ की आंधी के बाद
अंगड़ाई लेती दरख़्त पर
जब नयी कोपलें आती हैं
 मुझे एक याद आती है  

सर्द सर्द रातों में
ठिठुरन को दूर करती जब
चाँद की शीतल तपिश तपाती है
 मुझे एक याद आती है

सबका इंतजार ख़त्म हुआ देख
मेरे ह्रदय को बहुत तडपाती है
मेरी आँखों की नमी
हर पल आभास तुम्हारा करातीं हैं

 मुझे एक याद आती है ..... शोभा

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

आ सखी चुगली करे

नयी सखियों का चुगलखाने में स्वागत है आते ही उनका" उलटवार प्रशन" मुझे पसंद आया क्योकि बहुत सी महिलाए बस अपनी इसी' कला " का इस्तेमाल कम करती है,, आपका प्रशन है की इस ब्लॉग का नाम आ सखी बाते करे भी हो सकता था 
चुगली शब्द नेगेटिव सेन्स देता है


यदि ब्लॉग का नाम होता' आ सखी बुराई करे "...तो ..यहाँ नेगेटिव सेन्स आ सकता था चुगली शब्द कुछ अलग हट कर करने को प्रेरित करता है , " चुगली'' --- वो है जो करने के बाद दिल हल्का हो


दिमाग का खुल कर इस्तेमाल हो ,यह वह कला है जिसमे पारंगत होना हरेक के बस में नहीं ,जहा इसमें इमली सा खट्टापन होता है तो कही चाट सा चटपटापन ..आपकी .कुछ ऐसी बाते भी सामने आये जो आपको दुसरो से जुदा बनाती हो


...अब यह तो आप सभी पर निर्भर करता है की आप इस ब्लॉग का कितना और कैसे उपयोग करती है ,,,मैंने अपनी तरफ से सभी सखियों को'" सखी "का दर्जा देकर उन्मुक्त उड़ने की जगह भर दिखाई है जहा हम सब मिल कर कई रंगों से रंगा सपना देखे, कभी आसमान छूने का तो कभी कल-कल बहती नदिया कि लहरे बन कर समुंदर में गोते लगाने का तो क्यों ना इस इन्द्र धनुषी झूले में हम सब मिल कर बैठे और गाये 


...सखी रे आ बावरी चुनरिया ओढ़े..

बावरा मन्



शनिवार, 2 जुलाई 2011

गौरवान्तित हु..."नारी हु मै.."



अहसास..

भावनाएं..

और खुशियों की 

पर्यायवाची हु मै

समजती हु खुद को 

बहोत भाग्यशाली मै 

क्योंकि...

"नारी हु मै".....!!

रिश्तो की परिभाषाओ से 

बढ़ कर है 

उसे 

प्यार से निभाने का 

समर्पण...

हाँ.. 

सब से प्यार पाने कि 

लालसा

रखती हु मै 

हरदम..

लेकिन

ऐसा भी नहीं कि 

न पूरी हों लालसा

तो 

अपने दायित्व से 

मुकर जाती हु मै...

क्योंकी....

"नारी हु मै "...!!!!

मेरी ख़ुशी 

तो 

सब को खुशियाँ 

बांटने में है,

सबके दिल में 

बसने वाली 

खुशियों में ही तो 

मेरा बसेरा है...;

हरदम 

सबकी खुशियों में 

खुश रहती हु मै...

क्योंकी...

"नारी हु मै "...!!!

इसकी शुरुआत 

इस दुनिया में 

मेरी पहली धड़कन के 

साथ हों जाती है..

और 

निरंतर बहती है 

जिन्दगी के 

हर पड़ाव के साथ 

अन्तिम धड़कन तक 

अविरत 

बहती चली जाती है..;

खुद को भूलके...

हर हालात में 

मुस्कुराती रहती हु मै...

क्योंकी...

"नारी हु मै."...... !!!!....




कविता राठी..

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

जिंदादिल औरतें...

मैं आज नीले अम्‍बर के तले बने इस सखियों के झूले में झूलकर खुद को एक बार फिर उस बचपन में ले जाना चाहती हूं जिसे इस उम्र में आकर वापस जीना एडवेंचर से कम नहीं पुरुषों की तरफ से अकसर यह सुनने में आता है कि औरतों को समझना मुश्किल है पल में माशा पल में तोला वास्‍तव में यदि महिलाओं की मनोस्थिति का अध्‍ययन थोड़ा भी बारीकी से किया जाए तो महिलाएं मुश्किल न लगेंगी मैं भी अपने आस पास देखूं तो मुझे ऐेसे कई चेहरे ध्‍यान में आते हैं जो सिर्फ अपने हंसने-हंसाने के लिए समूह में लोकप्रिय हो जाते हैं।


मेरी कॉलोनी में एक नीलकंठ जी की बहु रहती है। नाम सुनकर लगेगा कि कोई नववधु है, लेकिन अब तो उनकी पुत्रवधु भी नववधु नहीं रही। दादी बन चुकी नीलकंठ जी बहु का चेहरा बड़ा व गोल और रंग पक्‍का है। लम्‍बाई पांच फीट और चौड़ाई कोई दो महिलाओं जितनी। इन सबके बावजूद अगर कुछ आकर्षक और मजेदार लगता है तो वह है उनका मजाक करने के बाद जोरदार अट्टहास करते हुए हो हो करके हंसना। उनका मुझ पर बड़ा प्रेम रहा है। मेरे सुझाव पर उन्‍होंने अपने घर पर एक किटी पार्टी का आयोजन किया। जिसमें मुन्‍नी बदनाम हुई पर नृत्‍य का ऐसा समां बांधा कि हंसते हंसते पेट में बल पड़ने लगे। कुल मिलाकर अनपढ़ होने के बावजूद वे हम कॉलोनी की महिलाओं की मुखियां बनी हुई हैं।


ऐसा ही दूसरा उदाहरण है मेरे पीहर की गली में रहने वाली गोलू की मां का। ठेठ हरियाणवी अंदाज में हंसना और बोलना कि पूरी गली में सुनाई दे। और सुनने को रोचक भी लगे। समय रहते हमारी शादियां हो गई, उधर गोलू गलत संगत में पड़कर अपने अभिभावकों की छांव से इतना दूर चला कि गोलू की मां का अट्टहास भी उसके साथ चला गया।


मेरी अंतरंग सहेली अनुराधा शर्मा का। मेरे साथ बीएड कॉलेज में पढ़ती थी। जहां मैं गंभीर बनी रहती, वहीं वह पूरे समूह में घूमती रहती और अन्‍य छात्राओं में पॉमिस्‍ट के रूप में प्रसिद्ध थी। जब अनुराधा के सामने खुलता तो हर लड़की का हाथ काफी कुछ कहता था। सारी कहानी और सारी समस्‍याएं उसी हाथ में होती। और उसका हल मेरी प्‍यारी सहेली के हाथ में। यह अलग बात है कि यह सिर्फ मैं जानती थी कि अनुराधा को हाथ देखना नहीं आता। पर, हां आंखें पढ़नी जरूरी आती होंगी।


इन तीनों उदाहरणों से मैंने एक बात सीखी, खुद को खुश रखना। यदि मैं ऐसा कर पाती हूं, उसका माध्‍यम चाहे कुछ भी चुनूं, तो समूह या समाज में अपनी अलग ही पहचान बना पाउंगी। जिन महिलाओं ने परिस्थितियों को खुद पर हावी नहीं होने दिया है, वे उन सभी से जुदा हैं जो समस्‍याओं को बड़ा मानकर चलती है और उसी में डूब जाती हैं। 

मै मुस्कुराई हु..

सखी प्रवीणा


बिछड़ के तुझसे..
तेरे 
और करीब आई हु..
डूब के तेरी 
यादो के समंदर में..
कुछ हसीं लम्हे 
चुन के लाइ हु..
इन लम्हों में 
महसूस कर तूझे 
अपने साथ 
देखो ....
आज अरसे बाद
मै मुस्कुराई हु..!  कविता..

"कविता" पे कविता की.."कविता"...!!!



कितने तेरे रूप है कविता...
कितने सारे तेरे रंग...;
हर अहसास को कर आत्मसात
जीबन में पल पल चलती हों संग..!!

दिल से जो देखे..पढे और समझे..
कुछ भी नहीं तुझसे बेहतर..;
खुद को भूल के जीनेवाले..
कर देते अनदेखा तुझ को भी अक्सर..!!!

सागर सी गहराई तुझमे..
उचाईयां तेरी पर्वतो से बढ़कर..;
सुख,दुःख..दर्द ..मौन और आंसू..
तुझमे आते हर शब्द छन-छनकर..!!

कवी ह्रदय की बन प्रियतमा..
तो कभी बन प्रेयसी की हलचल..
बन ममता मात- ह्रदय की..
जीती हों सब की साँसों में हर पल...!!! ...कविता राठी..