बुधवार, 3 अगस्त 2011

चाहत चक्रवात की...

चाहत चक्रवात की....!!!!

सागर की सी विशालता
हो न हो मुझमे लेकिन,
भावनाए तो लहरों सी
उमड़ रही है...!!
लहरों की तरह
बहती है ये भी
निरंतर.....
छू के मेरे तन-मन को
ये मुझे भिगो रही है!!!
सिर्फ़ इन में भीग के
जीना नही चाहती मै,
चाहत मेरी की
इनमे तूफ़ान आए,
आए चक्रवात
और सुनामी!!
ताकि हो मन-मंथन मेरा
और विष-विचारो (विषयो)का
हो निकास..!!!
रह जाए मन में
भावनाओ का अमृत
और करू मै अपना आत्मविकास !
जीत के अपनी अंतरात्मा को
साक्षात्कार करू परमात्मा का,
पाकर उसकी स्नेहिल छाया
स्मरण करू अपने श्याम का!!...कविता राठी..

2 टिप्‍पणियां:

  1. सागर की सी विशालता
    हो न हो मुझमे लेकिन,
    भावनाए तो लहरों सी
    उमड़ रही है...!!आपकी रचना का मुझे सदैव इंतजार रहता है जानती हु शानदार अभिव्यक्ति होगी |

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सखियों आपके बोलों से ही रोशन होगा आ सखी का जहां... कमेंट मॉडरेशन के कारण हो सकता है कि आपका संदेश कुछ देरी से प्रकाशित हो, धैर्य रखना..