शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011



ये पंक्तियाँ समर्पित हैं ...... सभी सखियों को

सखियों नव वर्ष की खुमारी ..--------------

मंद किया सबने, दीपक को


प्यार करे प्रीतम, जब प्रिय को



सोच लिया है मैंने साथी


कम न करूंगा, दीपक-बाती

प्यार करूंगा जब भी तुझको


बाहों में जब लूंगा तुझको 



खोल केश में तेरे लूंगा

इस साए में प्यार करूंगा



 ·  ·  · 

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

एक  अभिव्यक्ति ----- 


१-अधर नज़दीक थे जब अधरों के , वो पल मुझको ऐसे भाये 
चाहा बहुत रोकना दिल को,चाहत दिल की रोक ना पाए !!

२-गया ठहर समय पल भर को, संगम हुआ जो अधरों का
लगा जेठ के मौसम में , शीतल बयार का एक झोका !!

३-आँखे भी कुछ बोला करती ,शब्द कर सके जो न व्यक्त
आकर के कर दो कुछ ऐसा ,नस -नस में लगे दौड़ता रक्त !!

४-स्पर्श किया हल्का सा तुमने ,लगा दहकता मुझको तन
सोयी चाहत जाग उठी और, व्याकुल हो गया अपना मन

५-स्पर्श प्रथम तेरे अधरों का , विस्मृत ना हो पायेगा
याद आयेगा जब भी वो क्षण , खुमार नया फिर छायेगा !!

कुंए में .....१

ठोक दी गई हैं कीलें
समय में, कि
कील दिया है हमें
इस समय ने

अब यहाँ
सरसों नहीं फूलती
धरती को छोड़ दिया
यूँ ही उजड़ने के लिए

हवा भी खो बैठी है
अपनी महक
विदेशी परफ्यूम की
गंध में

रात दिन
सीमेंट के बंद डिब्बों में
रेंगते हुए
क्या जान पा रहे हैं

किस साजिश के तहत
डाल दिए गए हैं
किन्हीं कुओं में  

रविवार, 25 दिसंबर 2011

प्रेम - आज के परिपेक्ष्य मे

यूँ तो ना गयी वहाँ, कोई खबर.. पर आहों के खामोश असर
पैगाम हुए ......बदनाम हुए ..
यूँ तो ना दिए , कुछ सुख हमको .. पर उनसे जो पहुचें दुख हमको
इनाम हुए ..बदनाम हुए
जब होने लगे ये हाल अपने .. शब रोशन साफ़ खयाल अपने
इबहाम हुए .....बदनाम हुए                                   
  इतने गहराई लिए शब्द सेतु ... क्या पढ़ कर अनायास ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है  कि इसे रचने के  लिए किस कदर का प्रेम महसूस किया होगा नायिका ने
"प्रेम " जिसे कबीर ने ढाई अक्षर मे खोजने को कहा ,  और  जाने कितनी हजारो कालजयी कृतिया प्रेम पर उतार दी गयी , मगर लगता है शब्द रचना से इसे पूर्ण  समेटा ना जा सकेगा कभी ।  मगर कृष्ण ने इस पर पूरी कृष्ण लीला ही रच दी ,
प्रेम को छु लेने का साहस जो कृष्ण ने किया वो युगो युगो तक कोई पुरुष ना कर पाया 
कृष्ण को इसीलिए सम्पूर्ण युग पुरुष की संज्ञा से नवाजा गया है । नीति विशेषज्ञ कृष्ण ने प्रेम मे कोई नीति निर्धारित ना की मगर क्या वे राधा की विरह को उतनी गहराई से समझ पाये , कुछ का मानना है नहीं , वे इसे समझते तो राधा को इस तरह विरह के जंगल मे झुलसने ना देते । मगर कुछ इस प्रेम को  देह के परे मान कर  राधा की विरह बेला को भी कृष्ण लीला मे समाहित कर गए । 

मगर क्या किसी ने सोचा है  आज भी हजारो ,लाखो नारिया  अपने जीवन काल मे राधा स्वरूप को जी रही है  , चाहे वो पत्नी रूप मे है या प्रेमिका ... प्रेम तो दोनों करती है अपने नायक से ... तभी तो  जहा  रिश्ते मे  प्रेम है वहा आज भी कृष्ण और राधा स्वरूप आमने सामने  आते है , तब  आज भी हर  स्त्री पुरुष बंधन अपनी एक अलग कहानी रचता है ,अत  जहा प्रेम है वहा वेदना है जहा वेदना है वहा पहले दुख , फिर तकलीफ और फिर विरह घर बनाते जाते है ,  इसीलिए जहा हर नारी  को उदासी के उस अथाह समुंदर मे गोते लगाते देखा जा सकता है , वही पुरुष उसके  अंत करण मे जाने कितने  यहा वहा बिखरे  खारे पानी के मोतियो  को  समेट कर माला गूँथने मे असफल रहा है   ।प्राचीन काल से आज तक मे  चाहे जीतने युग बदले हो मगर प्रेम का यह स्वरूप नहीं बदला...क्योकि आज भी प्रेम की कृष्ण बिना अधूरी है ... अब जहा प्रेम है वहा या तो मिलन  होगा या विरह .. कृष्ण ने अपने पूरे जीवन काल में अपनी  अपनी लीला दिखाई परंतु फिर क्यो राधा को अकेला छोड़ कर मथुरा चले गए ... वजह मिलन से भी उच्च होता है विरह ।
विरह मे ही प्रेम की उच्च कोटी की भावना छिपी होती है यहा  प्रेमीसिर्फ प्रेम करता है अपने प्रेम के बदले उसे कुछ नहीं चाहिए ।
अब इसी प्रेम की तुलना आज के प्रेम से कीजिये - पति - पत्नी मे प्रेम है मगर यहा भी कुछ स्वार्थपरता जुड़ी है जब तक एक स्वार्थ है प्रेम खींचता चला जाता है जब लक्ष्य अलग होते है तो अलगाव शुरू हो जाता है    इसे हम विरह तो ना कहेंगे । मगर फिर भी क्यो प्रेम का अस्तित्व आज भी मौजूद है धरती पर ... प्रश्न यू ही रहेगा उत्तर आप खोजिए । 

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

यह नारी..

नदी की उफनती बाढ़मे  
जलावर्त के ठेठ भीतर के भवरमे - 
घुमराते अंधेरो में- 
घर-गृहस्थी- 
बंधी  -संबंधी 
  रश्मो -रिवाज़ों 
और  
पति-पुत्रो में खूपी हुई
कुल बुलाती देखी मैंने  नारी ! 
संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये 
लगावो के  जोड़ों को वह  काट नहीं पाती है कभी भी- 
क्यों की वह 'आरी' नहीं हो पाती है- 
संधि है यह ;नारी'

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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

'मेरी सहेली'

आज रह - रह कर तुम्हारे ख्याल का जेहन में कौंध जाना..
'मेरी सहेली' तुम्हारा बहुत याद आना,

वो हमारी 'तिकड़ी' का मशहूर होना,
इक दूजे से कभी दूर न होना,
वो मेरा डायरी में लिखना कि 'अंजना बहुत स्वार्थी है'
और तुम्हारा पढ़ लेना..
'तब'
कितने सलीके से समझाए थे तुमने,
जिंदगी के 'सही मायने'..
'देखो न' मेरी डायरी के वो पन्ने,
कहीं गुम हो गए हैं...
'याद है'
वो होम साइंस का प्रैक्टिकल,
जब प्लास्टिक के डब्बे में,
गर्म घी डाला था हमने,
उसे पिघलता देख कितना डर गए थे तीनो...
'और फिर'
हंस पड़े थे, अपनी ही नादानी पर,

सोचा नहीं था,
कि हमारा साथ भी छूटेगा कभी,
पर हार गए हम,
'प्रकृति के' उस एक फैसले के आगे,
'अब तो'
रोज़ तारों में ढूंढती हूँ तुम्हे,
लेकिन इक बात कहूँ,
'सच्ची में' बहुत स्वार्थी थी तुम,
वर्ना क्यों जाती, 'अकेले',
हमें यूँ छोड़ कर....

आ जाओ न वापस..
'फिर चली जाना'..
जरा अपनी यादों को धूमील तो पड़ जाने दो..
उन पर वक़्त की धुल तो जम जाने दो...

(मेरी सहेली 'अंजना' को समर्पित)

बुधवार, 23 नवंबर 2011

राधा का गीत


मुझे दोष मत देना, मोहन,
   मुज पर रोष  न करना !
दिवस जलाता , निशा रुलाती,
  मन की पीड़ा दिशा भुलाती
कितनी दूर सपन है तेरे
कितनी तपन मुझे जुलसाती
चलती हू   , पर  नहीं थकाना
 जलती हू पर होश न हरना     
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !
इसी तपन ने आखे खोली
 इसी जलन ने भर दी जोली
जब तुम बोले मौन रही मै
 जब मौन हुए तुम , मै बोली
सहना सबसे कठीन मौन को
 कहना है , खामोश न करना !
मोहन,
   मुझ पर रोष  न करना !

बुधवार, 16 नवंबर 2011

आपके जिगर से दूर न हो जाए कहीं आपके जिगर का टुकड़ा

आजकल टीन एज   बच्चों की आत्महत्या की ख़बरें आम बात हो गयीं हैं ! टीवी और समाचार पत्रों में आये दिन ये ख़बरें हम पढतें सुनतें हैं ! फिर एक दुसरे से और खुद से प्रश्न करते हैं ......
उसने ऐसा क्यों किया ...?
ऐसा करने से पहले उसने एक बार अपने माता-पिता के बारे में क्यों नहीं सोचा ...?
उसे किसी से किसी तरह की परेशानी थी तो उसने घर में किसी से उसका जिक्र क्यों नहीं किया ..?
दोषी कौन ...?
ये सारे प्रश्न वाजिब भी हैं लेकिन ऐसी स्थिति आई क्यों , अभिवावकों को इस प्रश्न पर गंभीरता से सोचने की जरुरत है ! कहीं माँ-बाप बच्चों से जरुरत से ज्यादा आकंछायें और उम्मीद तो नहीं लगा बैठते और पूरा न हो पाने पर बच्चे को उसके लिए दोषी तो नहीं ठहराते ..?
आज एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्प्रधा सब पर हावी हो रही है ! इसका असर मासूम बचपन पर भी पड़ा है ! माँ-बाप पड़ोसियों और अपने मित्रों के बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते देख , उसका उदहारण अपने बच्चे को देकर अनजाने में कहीं न कहीं व्यंग करके अपने ही बच्चे के दिल को चोट पहुचातें हैं ! अगर इम्तहान में बच्चे के अंक कम आतें हैं उसके लिए भी उसे इतना दोषी ठहराया जाता है जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो ! अभिवावकों को इन सब बातों से ऊपर उठाना होगा और ये समझना होगा की उनके फूल से , जिगर के टुकड़े उनका  स्टेटस सिंबल मात्र नहीं हैं !

बच्चे में हार्मोनल चेंजेज़
आमतौर पर लड़कियों में 8  वर्ष और लड़कों में 12  वर्ष की आयु में  हार्मोनल चेंजेज़ आने लगतें हैं ! अपने  में अचानक आये शारीरिक और निजी बदलाव के कारन बच्चा चिडचिडा और विद्रोही हो जाता है ! मन में इस बदलाव से जुड़े प्रश्नों का आना भी स्वाभाविक है ! ऐसे में अगर अभिवावक का व्यवहार बच्चे से मित्रता पूर्वक नहीं है तो वो या तो अकेले ही घुटता रहेगा या फिर अपने मित्रों से ये बातें शेयर करेगा ! ऐसे में मित्र को ही अपना सबसे बड़ा करीबी मानने लगेगा ! अभिवकों को चाहिए की अपने बच्चे के अच्छे मित्र बने जिससे वो किसी भी तरह की बात आपसे बेहिचक शेयर कर सके ! स्कूल और कॉलेज में बच्चे को सभी मित्र ऐसे नहीं मिलेंगें को वो उसे सही सलाह ही दें ! कुछ मित्र बच्चे को भ्रमित भी कर सकतें हैं जिससे बच्चा किसी बुरी लत का शिकार भी हो सकता है !

बच्चों को समय दें
 आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में समय की कमीं सभी के पास है ! माता-पिता अगर दोनों नौकरीपेशा वालें हैं तो बच्चों के लिए वक़्त निकलना और भी मुश्किल हो जाता है ! फिर भी जिगर के टुकड़ों के जीवन से बढ़कर तो कुछ नहीं है ! कितनी भी व्यस्तता हो बच्चों को समय जरुर दें और ये समय आप रात के खाने के वक़्त और टीवी देखते हुए भी दे सकतें हैं ! उनसे मित्रतापूर्वक बात करें और उनकी पूरे दिन की गतिविधियों की जानकारी लें ! उनके कितने दोस्त हैं उनके भी रहन-सहन और विचारों की जानकारी लें ! उचित-अनुचित बहुत प्यार से बच्चे को समझाएं ! दिन में भी एक दो बार बच्चे को फ़ोन करके उनसे उनका हाल-चाल जरुर पूछें !
स्पर्श का महत्व
 बच्चा कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए उसे कभी कभी प्यार से स्पर्श जरुर करिए ! अगर बेटा है तो कभी प्यार से उसका सर अपनी गोद में रखें उसके बालों में उंगलिया फिराएं इसी तरह बेटी को भी कभी अचानक ही गले लगायें , प्यार से उसके माथे पर किस करें ! उन्हें ये अहसास दिलाइये की वो कितने ख़ास हैं आपके लिए ! कभी-कभी दिल में बहुत प्यार होते हुए भी अभिवावक बच्चों से व्यक्त नहीं करते हैं ! जब भी वक़्त मिले अपने प्यार में बच्चे को भिगों दीजिये !
यकीन मानिये ये सब सावधानिया अभिवावक बरतेंगें तो कभी भी उनके जिगर के टुकड़े उनसे दूर जाने की भी नहीं सोचेंगें भी नहीं !
(शोभा)

शनिवार, 12 नवंबर 2011

एक अबोध बचपन


एक अबोध बचपन

एक धीमा बचपन
जो खुद में ढूंढता है
एक मासूम बच्चा
जिसका कोई उत्तर नहीं ...
मन का वो बच्चा जो
भागता है ,
नदी के बहाव के साथ साथ
कहीं दूर तक
बिन सोचे कि
ये कौन दिशा जाएगी
और वो दौड़ता
चला गया
साइकिल के पीछे
अपने कदमो की
गति के साथ
बिन अपने कदमो की
मिथ्या को पहचाने .....

बच्चे का मुखौटा बदला
उसने अपने 'स्व ' से
खिसकना बंद किया
ढांचा स्थिर हुआ
अचानक उसके चेहरे से
एक अजनबी चेहरा
प्रगट हुआ ...
जो क्रूर था ..अपनों
और गैरों के लिए
कुछ कठोर ,कुछ निर्दयी
कुछ अनजान ,कुछ परेशान सा
अपने ही वक़्त से
उसके मन का सरोवर
उसका ही कठोर ,
छिपा हुआ जलपुंज उसका
अपने ही
दर्प से जल रहा था
...

बच्चे का मुखौटा
फिर से बदला
वो अपने 'स्व 'के साथ
फिर से स्थिर हुआ
नयनो में अब मौन
की भाषा थी ....
आहट ,जर्जर ह्रदय था
उसने जीवन में ..
तब उसने
संतोष पाने का संकल्प किया
जब अपनों ने भी साथ छोड़ दिया
किसने उसे सुना ?
किस आवाज़ ने उसका उत्तर दिया ?
वो चीखा ...और किसी को
इसका पता नहीं चला ..
अकेलपन का भयानक चक्र
जब ऊपर उठा
तब....उसकी वापिसी हुई
एक अबोध बचपन
जो खुद में ढूंढता है
एक मासूम बच्चा
हमेशा ही अपने भीतर
एक अबोध बचपन .......


अनु ...

"दहेज दोषावली"

(३)

१)दहेज सु भलो सर्प बिस प्राण जाय इक बार..
दहेज बिस सुं मुइ कन्या जीते जी कइ बार..


२)वा नीचन तें नीच है, जो दहेज मांगन जाय.
उनते भी वा नीच है जो कन्या वासो परणाय..


३)धन मांगै निरस भये,रस बिनु उख मै काठ
काथ सु कन्या ब्याहदी, सुखी जीवन-बाट..


४)धिक धिक ! दहेजी दानवा! कितनी बलि तू खाय.
सौ सम रहिं न बिटिया सब कि तोहर भूख मिटाय


५) पोथा पढि पढि वर मुआ आयी न बुध्धि तोय
दुल्हन लाय दहेज बिनु सौ वर उत्त्म होय.


शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

"दहेज दोषावली" (2)
१) वे लोगन न सराहिए दहेज मांगन आय

प्रानन प्रीत पिछानिए, कन्या न आगि समाय....


२)फिरि फिरि आवैं धन घटै सो भिखारी जान.

एसन मंगत सु ब्याहिके कन्या गवाइ जान


३)बेटी दहेज न दीजिये ग्यान दिजै भरपूर

जीवन उजलै ग्यान तें, दहेज दहन तें दूर


४)चिता दहती निर्जीव को दहेज सजीउ जलाय.

मुरख हैं मा बाप वे दुषण यो उक साय.


५)इक नारी होवै सती निकला जुलूस अनेक.

अनेक जलीं दहेज तें जुलूस न देख्यौं एक.. 

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शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

"दहेज दोषावली" (१)


१) बेटी ब्याहन जो चले दहेज़ न दिजौ कोय |
दिन दिन अधम दहेजको कीड़ो विकसित होय.||

२)दहेज़ -दानव बहुरूपी ,विध विध रूप सजाय |.

फ्लेट,कार,बिदेश-व्यय, बेटी देत फसाय ||

३)दहेज़-दैत्य बसे जहां, बेटी तहा न देय.|
सुता-धन दोऊ खोयके बिपदा मोल न लेय.. ||

४)दे दहेज़ मरी मरी गए ,दुष्ट न भरियो पेट .|

ऐसे निठुर राखसका करै अगिन के भेंट||

५)वे मुआ नरकमा जाय , जेई लिनहो दहेज़.|
मुफ्त्खोरके कुल माहि बेटी कभी न भेज..||

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

i love my computer

khat se jo darwaza khola ssamne tum they muh dhak kar soye se......... dil jor se dharak utha .....haath kapne lage .. aankhe bhar aayi ..kitne din ke bad tumko dekha ...bhul si gyi thi na tumko ..par tumne bhi shiddat se yad nhi kiya ...tumhe chaha bhi bahut hai maine .... man kiya ke jaldi se choo lo tumko ..bas bhul jao sudh budh .kho jao tumhare saath tumhari duniya mai.... par par ................. kya karoo tumko choo bhi nhi pa rahi n tumhare bina rah bhi nhi pa rahi .kya karu ..jaldi se sham ho n bas main hou n tum howo ....uff kya rishta bana liya hai tumne mere saath ...... jab bhi akeli hoti hu tum jhat se apne mohpash mai bandh lete hi muze tab na tumse dur rahte banta hai na lipat te ......... har emotion tumse share kiye hai har pal tumara sath liya hai .... kai nye rishte bhi bane n kai ban kar bikhre ..... plz mat tarpao itna k kabhi hamko alag hona bhi parey to ho na pay ..... tum to harzai ho tumko koi aur mil jayga par ...........mai ....mai .......... mera kya hoga ..mai kaise rah paogi tumhare bin .......... plz mat banao apna aadi muze .plz chor do na muze mere hal par ...uff kyu aamantrir karrahe ho muk ban kar .tumhari har bhasha main nhi janti fir bhi .tumse pyar hai muze .tumne muze muz se jo milwaya hai ......... meri inner soul se ......uff .ab nhi raha jata .tuzh bin .bas ab aa hi rahi hu na tunhare pas ......... par pahle jitna aadi mat banana .......... .uff kutch hai na tum me jo tumse moh nhi tod pa rahi .bahut hi nirmohi hokar gyi thi dur tumse .k...........................kkkkkkkkkkkk.... ab nhi aaogi tumhare pas .. kabhi bhi nhi ............ sachi .............par ............par ........... ........................ kya karu ab aate jatee tum bar bar nazar jo aa jate ho ................... ......... ufff ........
.Are.. ramu is computer ko zara mere study room mai rakh do................. warna ye नीलिमा fir se इन्टरनेट ki nivia ban jayegi ...........................................

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

शाम की सिहरन

दोपहर मे बतियाती महिलाए 
कहती कुछ उधर  कुछ इधर का
बुनती सपना खिलखिलाती हुई
चहकती उस वृक्ष पर, पंख फड़फड़ाती हुई 
मगर शाम के ढलने तक अपने पंख समेट कर 
दुबक जाती चुप करके,, रात गहराती  देख कर
                      समय ही सिखाता है ,रुलाता है , हँसाता है यह हम सभी जानते है ,, मगर समय चक्र का असर हमारे मन मस्तिष्क पर कई महीनो सालो का ही नहीं पूरे एक दिवस से  भी होता है ,आज हम इसी चक्र की विवेचना करेंगे ,, पुरुष और स्त्री एक सिक्के के दो पहलू हो सकते है परंतु दोनों के सोचने और काम करने का तरीका भिन्न होता है ,पुरुष  जहा एक बार मे एक ही परिस्थिति के बारे मे सोचते है वही महिलाए एक बार मे  कई घटनाओ औरपरिस्थितियों पर विचार कर सकती है , यही कारण है महिलाए एक दिन मे भिन्न भिन्न कार्य को आसानी से कर लेती है वही पुरुष नौकरी प्रधान कार्य ही कर पाते है | यहा मै आज घरेलू  महिलाओ पर दिन बीतने के बाद शाम के ढलने के साथ उठने वाली घुटन ,सिहरन का कारण खोजने का प्रयास करूंगी |
 1) वैज्ञानिक कारण -सुबह सवेरे सूर्य की रोशनी आशा की किरण लाती है  , रात भर की थकान मिटने के बाद सूर्य की तेज रौशनी और ताजी हवा मन को प्रसन्न करने के साथ ऊर्जा का संचार लाती है जैसे जैसे दिन गुजरता जाता है ऊर्जा और रौशनी का हास होने लगता है ,, दिन ढलने और रात होने के बीच का यह समय संध्या काल कहलाता है , इस समय अक्सर गृहणीया अपना काम खत्म कर चुकी होती है सुबह सवेरे से किए कार्यो के कारण थकान के साथ दिनभर का लेख जोखा भी उनके सामने होता है , परिणाम यदि विपरीत हो तो यह खिन्नता को और भी बढ़ा देता है , और ऐसे मे अकेलापन हो तो महिला डिप्रेस भी हो सकती  है | उस समय  परिवार के अन्य सदस्यो का साथ अवश्यंभावी है |
2) वातावरणीय कारण --शाम के धुंधलके मे महिलाओ का प्रभावित होना उनके आस पास के वातावरण पर भी निर्भर है , यदि आपका घर पहाड़ी घाटी या ऐसे इलाके मे हो जहा बारिश और बादलो का जमघट वर्ष पर्यन्त रहता है तो यह वातावरण मन पर तुरंत प्रभाव डालता है ,, क्योकि लगातार बने बादल सूर्य की रौशनी के प्रभाव को कम करते है ,, और घर मे नमी का वातावरण बनाते है शरीर और मन से निकलने  वाली ऊर्जा किरण बादलो से टकरा कर नेगेटिव प्रभाव उत्पन्न करती है , चिड़चिड़ाहट बनने की वजह भी वही बनती है ,,दूसरा , यदि आपका घर मैदानी इलाको मे होने के बावजूद ऐसा ही कुछ महसूस होता हो तो यह ध्यान रखने योग्य  बात है कि काही आपके घर मे सूर्य  कि रौशनी और हवा का प्रवेश कम तो नहीं है ,, यदि ऐसा है तो शाम के समय अपने घर के खिड़की दरवाजो को खोलने मे देरी नहीं करनी चाहिए | ऐसे मे यह भी  जरूरी है की आप अपना ध्यान उन कार्यो मे लगाए जो आपके मन को प्रसन्न करते हो ,जैसे संगीत सुनना ,घूमने जाना , किसी कार्य मे नए प्रयोग करना ,आस पास के लोगो से बात करना इत्यादि कार्य आपके मूड को खराब होने से बचाएंगे इसमे कोई संदेह नहीं है |मै इसमे उदाहरण दूँगी ,मेरी उन सखियो का जो इस प्रभाव से प्रभावित होती आई है ,  एक आनंदी  रावत ,जिनका  घर पहाड़ी इलाके मे है दूसरी कविता राठी जो मैदानी इलाके से है परंतु घर सातवे माले पर होने के साथ ही बंद भी रहता है |
3) ज्योतिषीय कारण - ज्योतिषीय आधार पर संध्या का समय   "शुक्र का प्रभाव  " कहलाता है , जो अंधेरे के साथ बढ़ता जाता है ,, इस समय महिलाओ को घर मे मौजूद मंदिर मे दीपक जला कर घंटा ध्वनि के साथ इस काल का स्वागत करे |इसके अलावा वैभव पूर्ण सुविधाओ का उपभोग करे तो इससे बचा जा सकेगा |
  इस लेख मे मैंने जिन बिन्दुओ पर प्रकाश डाला है वे सभी व्यक्ति गत अनुभवो के आधार पर एकत्रित है यदि आपके पास इसके अलावा अन्य उदाहरण या कारण  हो तो आप हमे मार्गदर्शन जरूर दे ताकि महिलाए खास कर मेरी सखिया आपके विचारो से लाभान्वित हो सके |

सोमवार, 8 अगस्त 2011

नसीब औरत का...

सहमी है नज़र, सहमा है मन, यूँ भी देखा है तकदीर बदलते हुए,
इक पल भी नहीं लगता, इंसान को हैवान बनते हुए....

इक आह सी निकलती है, जब कोई औरत जलाई जाती है,
कई - कई बार देखा है, दुपट्टे को कफ़न बनते हुए....

दर्द, दहशत, सब्र, हया, ये तो नारीत्व का हिस्सा हैं,
अक्सर सुनती हूँ लोगों को, यही प्रवचन कहते हुए....

कोई गवाह नहीं, न कोई हमख्याल है,
यूँ गुजरते हैं लोग, जैसे हर नज़र अनजान है...

क्यूँ भटकती है 'अनु', क्या तलाशती है नज़र,
कभी देखा है क्या, पत्थर को इंसान बनते हुए....

                                                  !!अनु!!


शनिवार, 6 अगस्त 2011

जख्म, तकदीर और मैं

जख्म भरता नहीं.. दर्द थमता नहीं,

कितनी भी कोशिश कर ले कोई,

तकदीर का लिखा मिटता नहीं ...

चलता ही रहता है, जिंदगी का सफ़र,

कोई किसी के लिए, यहाँ रुकता नहीं..

खुद ही सहने होंगे सारे गम,

किसी की मौत पर कोई मरता नहीं,

हंसने पर तो दुनिया भी हंसती है संग,

हमारे अश्को पर, कोई पलकें भिगोता नहीं ...

आज दर्द हद से गुजर जायेगा जैसे,

कोई बढ़कर साथ देता नहीं,

जिंदगी तुझसे गिला भी क्या करे,

वक़्त से पहले, तकदीर से ज्यादा,

किसी को कभी, मिलता भी नहीं ...

!!अनु!!

इक चंचल नदी थी वो..

'सुन्दर' जैसे 'परी' थी वो,

खिलती हुई कली थी वो,

सुन्दरता की छवि थी वो...

फिर एक दिन, कुछ ऐसा हुआ,

कैसे बताउँ, कैसा हुआ..

इक शिकारी दूर से आया,

उस गुडिया पर.. नज़र गड़ाया

उडती थी जो बागों में जा कर,

वो तितली अब गुमसुम पड़ी थी,

किस से कहती, दुख वो अपने,

सर पे मुसीबत भारी पड़ी थी,

ऐसे में एक राजा आया,

उस तितली से ब्याह रचाया,

बोला 'मैं सब सच जानता हूँ'

फिर भी तुम्हे स्वीकार करता हूँ..

जब थोडा वक़्त बीत गया तब,

राजा ने अपना रंग दिखाया,

मसला हुआ इक फूल हो तुम,

इन चरणों की धुल हो तुम..

जीती है घुट घुट कर 'तितली',

पीती है रोज़ जहर वो 'तितली'

'भगवन', के चरणों में 'ऐ दुनिया ,

मसला हुआ क्यूँ फूल चढ़ाया...

कहना बहुत सरल है 'लेकिन'

'अच्छा' बनना बहुत कठिन है,

'महान' बनना, बहुत आसान है'

मुश्किल है उसको, कायम रखना...

याद रखना, इक बात हमेशा,

सूखे और मसले, फूलों को,

देव के चरणों से दूर ही रखना,

फिर न बने एक और 'तितली'

फिर न बने इक और कहानी..

!!अनु!!

इस दुःख के बादल कभी नहीं छटते, वक़्त के साथ और काले होते जाते हैं...

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

एक कविता लिखनी है

मेरे भीतर अक्सर उठती है आवाजें ,
वोह जो तुम अपने लफ्जों से कह जाते हो ,
वोह फुसफुसाती जो तुम सरगोशी कर जाते हो ,
वोह लफ्ज़ जो जागते हैं भीतर मेरे नींद में भी ,
जो सो जाते हैं मेरे चिंतन में जागते हुए भी .................

वोह लफ्ज़ आज बिखरे हुए हैं सब तरफ मेरे सामान की भीड़ में ..
जरा ठहर तो साथी मेरे ............
जरा समेट लूं उनको अपने दामन में ..............
तेरे साथ बैठ कर एक नयी "कविता " जो लिखनी है मुझे ..~

- नीलिमा शर्मा 

बुधवार, 3 अगस्त 2011

चाहत चक्रवात की...

चाहत चक्रवात की....!!!!

सागर की सी विशालता
हो न हो मुझमे लेकिन,
भावनाए तो लहरों सी
उमड़ रही है...!!
लहरों की तरह
बहती है ये भी
निरंतर.....
छू के मेरे तन-मन को
ये मुझे भिगो रही है!!!
सिर्फ़ इन में भीग के
जीना नही चाहती मै,
चाहत मेरी की
इनमे तूफ़ान आए,
आए चक्रवात
और सुनामी!!
ताकि हो मन-मंथन मेरा
और विष-विचारो (विषयो)का
हो निकास..!!!
रह जाए मन में
भावनाओ का अमृत
और करू मै अपना आत्मविकास !
जीत के अपनी अंतरात्मा को
साक्षात्कार करू परमात्मा का,
पाकर उसकी स्नेहिल छाया
स्मरण करू अपने श्याम का!!...कविता राठी..

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

मै आ सखी चुगली करे ( एक सुंदर कृति )

चरण स्पर्श  सभी ममतामई माँ  को ,

 मै आपकी अपनी सुंदर पुत्री" आ सखी चुगली करे ",पहचान गयी न माँ ,जानती थी क्या कोई माँ अपनी पुत्री को भूल सकती है भला ..इसलिए मिलने चली आयी अंतिम बार ,,तुम्हारे आँचल में मुह छिपा कर रोना चाहती हु एक बार ,,हसने का खिलखिलाने का सुकून जो मैंने तुमसे लिया है वो तो शायद ही किसी कृति  ने लिया हो ,,,मुझे जन्म देने वाली माँ तो कोई और रही है पर पाला पोषा , सजाया संवारा और आज इतना जवान और खुबसूरत बनाया तुम्ही सब ने  है  ,अभी मेरी उम्र ही क्या है ,,जैसे कल  ही जन्म लिया हो ,हमेशा तुम्हे और अपनी इस (जन्म दात्री ) माँ को साथ साथ हसते गाते ,मेरी चोटिया गुथ्ते देखा ,माँ ने कहा भी  एक बार," देख  कृति ये सब तुझे मुझसे भी ज्यादा प्यार करती है "और ऐसा सोच कर एक दिन माँ चली गयी मुझे तुम्हारी गोद में सौपकर  .. उसके जाने पर उसे ढूंढने...एक दिन मै चुपके से बाहर चली गयी ,तुम सब को पता ही ना चला ,देखा बहुत सी मुझ जैसी कृतियों को ,,चीत्कार रही थी" वे ", उनके रोम रोम से" आह" निकल रही थी , नीली और स्याह पड़ी थी उनकी चमड़ी ,शायद  बरसो से किसी ने उन्हें खिलाया ही नहीं तुम्हारी तरह ,,जाने कैसी अजीब सी गंध थी वो चारो और फ़ैल रही थी मेरे होठ नीले पड़ने लगे ,,दौड़ कर आने लगी तो रास्ता भूल गयी ,,इधर उधर कातर स्वर में तुम सब को पुकारने लगी ,,अँधेरा छाने लगा ,,भूख लगने लगी ,,याद आये तुम्हारे हाथो के परोसे वे पकवान ,,,तभी वहा एक व्यक्ति प्रकट हुआ उसने कहा वह" पुरुष "है मैंने कभी पुरुष को नहीं देखा था तुमने और माँ ने  भी नहीं बताया था की पुरुष क्या होता है ,उसने मुझे खाने को दिया सर पर प्यार से हाथ रखा ,कहा ,"मै पिता हु ,तुम्हारे माँ का पति" ... तभी .एक अन्य उसी जैसे पुरुष ने प्रवेश किया ,,और  बिना कुछ कहे उस दुसरे पुरुष ने मेरी ऊँगली पकड़ी और कहा" मै भाई हु" ...इसके बाद वो मुझे तुम्हारे आंचल में छोड़ गया ...मै दबे पाँव अंदर चली आयी यह सोच कर की तुम सब तो बाते कर रही होंगी ,अच्चानक पाँव ठिठक गए तुम सब" पुरुष" की बात कर रही थी ,मैंने भी कान लगा कर सुना ,,तुम में से एक चीत्कार रही थी ....उसी तरह ..उसके साथ कुछ बुरा ना हुआ ,,फिर भी जाने क्यों ...पड़ोस में आग लगी थी और वो बजाय की ठंडे पानी के छीटो को मारने के ..आग, आग  चिल्ला रही थी ,,,क्योकि चिल्लाना ज्यादा" असरकारी "था शायद, बजाय की कुछ करने के /  मै चुप चाप सो गयी ,,,नींद नहीं आयी पर सुबह देखा माँ आ गयी ...अपनी छाती से चिपका लिया ,पहली बार माँ की आँखे गुस्से में थी ,उसने मेरे नीले होठ देख लिए थे शायद ...माँ ने पुछा तुमसे  "ये कैसे हुआ " ,,तुमने कहा ,क्या हमारा हक़ नहीं ,हम ख्याल रख लेंगी ...सुन कर माँ ने अपना "हक़ " छोड़ दिया ...और अब चुप चाप देखती है बस ...याद करती है पुरानी बातो को ,,,कि कैसे तुम सब नयी सखी के आने पर उसे पलकों के झूले पर बिठा कर प्रेम गीत गाते थे ...जन्मदिवस हो  ,या वार त्यौहार ,चुहलबाजिया चला करती थी देर तक ... जबकि इस बात का भान था तुम सबको कि पूरा विश्व हा हा कार कर रहा है  फिर हंस कैसे ली उस समय ,शायद भूल गयी थी मुझे देख कर ,अपना सारा गम पिघल जाता था प्रेम रुपी मोम में ,,फिर आज क्यों चहुओर चीत्कार  सुनायी दे रही है ,वही गंध फ़ैल रही है नथुनों में,  मेरा  पूरा शरीर भय से काँप रहा है शायद" पुरुषो " को लेकर सुनाये तुम्हारे किस्सों से ...क्या तुम अपनी पैदा हुई संतानों को ऐसे ही भय ग्रसित नहीं कर देती .?/  लो उपर वाले का बुलावा आ रहा है शायद ,,आँखों से दिखाई देना बंद हो रहा है शरीर नीला पड़ रहा है ,,,मुझे बचा लो ....मुझे बचा लो प्लीज ...नहीं तो माँ यशोदा के स्वरूप पर फिर कोई विशवास ना करेगा

सोमवार, 1 अगस्त 2011

Intzaar

कभी तुम देखना अगर जो मिल गये 
 कभी किस्मत से  .........
 मेरे लिए भी..........
 कुछ वक़्त तुमको 
 मेरे बटुए  में  
 कुछ फटे हुए कागज पर 
 बिंदी के पत्तो के पीछे खिची 
लफ्जों की लकीरे 
 पंसारी के लिफाफों पर लिखी कुछ नज़्म
.............................................
 सब सम्हाल कर रखी है मैंने 
 .. कहा लिखकर रखू इनको
 यु अचानक जब ख्याल
एक श्रंखला बनकर आते है मन में 
 में बस लिखती जाती हु 
 सहेजती जाती हु 
 किसी दिन तो होगी मेरी यह 
 उदासी तेरी 
http://nivia-mankakona.blogspot.com/

Intzaar

कभी तुम देखना अगर जो मिल गये 
 कभी किस्मत से  .........
 मेरे लिए भी..........
 कुछ वक़्त तुमको 
 मेरे बटुए  में  
 कुछ फत्ते हुए कागज पर 
 बिंदी के पत्तो के पीछे खिची 
लफ्जों की लकीरे 
 पंसारी के लिफाफों पर लिखी कुछ नज़्म
.............................................
 सब सम्हाल कर राखी है मैंने 
 .. कहा लिखकर रखू इनको
 यु अचानक जब ख्याल
एक शरंखला बनकर आते है मन में 
 में बस लिखती जाती हु 
 सहेजती जाती हु 
 किसी दिन तो होगी मेरी यह 
 उदासी तेरी 
http://nivia-mankakona.blogspot.com/
 बस इसी इंतज़ार में ................. नीलिमा शर्मा [निविया]

रविवार, 31 जुलाई 2011

**** बचपन क़ी सहेली ****

 

आज फिर ख्वाब में वो आई ...
सहेली थी मेरे बचपन की !

वो पलाश के पेड़ो से घिरे ..
मुझे मेरे स्कूल की याद आई !

वो स्कूल का मध्यांतर ...
और वो मस्ती याद आई !

वो सहेलियों संग बैठना ..
वो रूठना मनाना ...

सुन्दर चित्रों से वो ...
पेन्सिल के डिब्बे को सजाना ...

चुपके से बगिया से फूल चुराना ..
फिर वो माली की फटकार याद आई!

आज भी वो सहेली ..
बहुत याद आती है ..
ख्वाबों में मेरे वो अक्सर आती है !

काश तुम मिलती ,साथ बैठते...
बचपन के वो पल...
फिर से हम जी लेते !!

आज फिर ख्वाब ........

!!!! शोभा !!!!

रविवार, 24 जुलाई 2011

खाली सा लगता है



क्यों सब कुछ खाली सा लगता है..
आंखे  भरी है आँसू ओ से फिर भी आँखो में शुन्यता
है ,

दिल है दर्द और ख़ुशी यो से भरा..
फिर भी दिल वीरान लगता है..

बाहों में जुल रही है कितनों की बाते..
जिसे गले लगाकर हम फिरते है पूरा दिन..
फिर भी एक अकेलापन सा लगता है..

जब भी तलाशती हुं खुद को..कभी अकेले में..
तो वो अकेलापन जैसे घुटन सा लगता है..

छोड़ दिया है अब खुद की परेशानियों को सोचना..
दिन रात जैसे जिंदगी का सिर्फ आना जाना लगता है..

नीता कोटेचा..

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

एक बार ओ मायड़ म्हारी..थारे पास बुला ले..!!

माँ ..
आवे हे जद
ओ सावण मास
मनडो म्हारो होवे
घणो उदास..!!
आंख्या राह निहारे
हियंडो थाने पुकारे
एक बार ओ
मायड़ म्हारी..
थारे पास बुला ले..!!
सावणीये री तीज आई...
आंख्या म्हारी यूँ भरी..
ज्यूँ भरे सावण में
गाँव री तलाई..!!
मायड़ म्हारी!!
काई बताऊँ थाने..
अवलु थारी कत्ती आई..!!
कित्ती सोवणी लागती
वा मेहँदी भरी कलाई
रंग बिरंगी चुडिया
भर भर के सजाई..!!
लहराता लहरिया सावण में
मांडता हींडा बागां में..
झूलती सहेल्यां साथ
आ लाडेसर थारी जाई..!!
आंवतो राखडली रो तींवार
भांव्तो बीराजी रो लाड
हरख कोड में आगे लारे
घुमती भुजाई..!!
ओ बीराजी म्हाने
आप री अवलु घणी आई..!!

भादरिये री तीजडली री
जोउं बाट बारे मास...
सिंजारे में माँ बनावती
पकवान बड़ा ही खास..!!
तीजडली रो सूरज उगतो..
बनता सातुडा अपार
कजली पूजता आपा सगळा..
तले री पाळ में खोस
नीमडी-बोरडी री डाळ..!!
जवारा री पूजा करने
पिंडा पूजता..
दीपक जलायणे तले में..
सोनो..रूपों..चुन्दडी निरखता..
बाबोसा बेठने डागोल
बाट चान्दलिये री जोंवता..
आंवतो चांदो..खुशिया लान्वतो..
हरख सगळा रो मन में ना मांव्तो
अरग दे पिंडा परासता..
बातां सगळी आवे याद
ओ मायड़ म्हारी..
कई बताऊँ थाने हिन्वडे रो हाल..!!
आ तीजडली आप रे सागे
यादां घणी लाइ..
ओ बाबोसा म्हारा..म्हाने
आप री अवलु घणी आई..!!!कविता राठी..

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

मन में उठती है रोज़ ,एक उम्मीद एक नई आशा ,
दिन ढलने से पहले वक़्त पलट देता है पासा ,
वक़्त दे जाता है मौत ,हम रह जाते हैं मौन ,
बस यही सोचकर कि,
एक दिन मन उम्मीद कि विजय पताका फहराएगा ,
और उस दिन हम जीत जायेंगे ,
और वक़्त हमसे हार जाएगा ,
वक़्त से जीतने का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है ,
अब भी मुझे अपने मन कि हार से इनकार है ,
मन में उठती है रोज़ एक उम्मीद एक नई आशा ****
दिल के गहरे सागर में ,
बस ठहराव की कमी है ,
कभी सवालों क तूफां है ,
कभी विचारों की सुनामी ,
दुनिया के झमेले ,हर वक़्त आँखों में नमी है ,
दिल के गहरे सागर में ...........
अहसास दिल के बेअसर हों जैसे ,
ना गम में उदास होता है ,
ना खुशियों में ख़ुशी है ,
कहने को तो ज़िंदा भी हैं हम ,
बस जिंदगी की कमी है ,
दिल के गहरे सागर में *बस ठहराव की कमी है **
खेल कर जज्बातों से मेरे ,ज़ख्म नए हर वक़्त दे गया ,,
सोचा था अब ना आयेंगे दिल की बातों में ,
ना पड़ेंगे जज्बातों में ,पर इस बार भी ये दिल पस्त हो गया ,
आज फिर कोई अपना हमें शिकस्त दे गया
ना समझ सकेगा चलन बेदर्द ज़माने का ,
गर संभालना भी चाहो तो वक़्त भी नहीं ,
लेगा कहाँ तक जाकर दम ,ए जिंदगी के मुसाफिर ,
इस राह तो कोई दरख्त भी नहीं**

मुस्कराहट मेरी.....!!!

सच्चा संगी..सच्चा साथी...
पल पल मेरा साथ निभाती...
मुस्कराहट मेरी...!!!


अहसासों की प्यास बुझा कर
जीने की उम्मीद जगाती..,
आंसुओ के घूंट पी कर..
जलन सीने की मिटाती
मुस्कराहट मेरी..!


मौसम के साथ चलकर
ठण्ड धुप और बारिश सहकर
जिन्दगी के आंधी तुफानो
से मुझे है बचाती..
मुस्कराहट मेरी..!!


सब कुछ सहकर
हंसती रहकर
है मुझे भी हंसाती
जीने की उम्मीद जगाती
मुस्कराहट मेरी..!!


ना गिला इसे किसी से..
ना कभी किसी से शिकवा..
मुझमे रह कर..मेरी बनकर..
पल पल मेरा साथ निभाती..
मुस्कराहट मेरी..!!!..कविता..

सोमवार, 18 जुलाई 2011

आभासी दुनिया से सच की जमीन पर कुछ पल

मुझे फेसबुक छोड़ने का गम कभी नहीं हुआ, मगर अपने ग्रुप से दूर होना इतना पीड़ादायी था कि तीन दिन तक गुमसुम रही। जोशीजी समझ गए, चौथे दिन सुबह बुलाकर आ सखी के ही रूप रंग का सुंदर ब्लॉग दिखाया। इसे देखकर मैं बच्चों कि तरह उछल पड़ी। मैं भाग्यशाली हूं कि सखियां मुझ पर विशवास करके इसमें शरीक भी हो रही है।
           हां, इतनी भाग्यशाली कि उसी आभासी दुनिया से एक सखी निकल कर  बड़े प्रेम से मुझसे मिलने मेरे घर आती है। यकीन नहीं होता। सेरोनिका सीमा व्यास जिससे मैं पहले कहीं नहीं मिली, का आने के पहले फोन आया कि बीकानेर आएगी कुलदेवी दर्शन को तो मिलने आएगी। सो मैं घर कि सफाई में लग गई। मेरे घर में यूं तो आम घरों कि तरह रोज ही  सफाई होती है जैसे फ्रिज में रखी मिठाई की सफाई, ठंडी हुई बोतलों से पानी कि सफाई, व्‍यवस्थित रखी चीजों कि सफाई, पर अभी तो सखी आ रही थी सो सफाई थोड़ी भिन्न थी, अगले रोज फोन आया हम बीकानेर पहुच चुके हैं,एड्रेस बताएं, मैंने कहा मौसम विभाग (घर के पास ) तक आ जाएं सामने से जोशी जी को लेने  भेज दूंगी। 
रायते की खातिर कॉलोनी की डेयरी से दही लाने जोशीजी को भेजा। कहा "जल्‍दी आना"। एक परफेक्‍ट पति की तरह जोशीजी जल्‍दी नहीं आए, पर सीमाजी का फोन आ गया कि "हम पहुंच गए हैं" आखिर कान्‍हे को अकेला छोड़ मैं ही सामने लेने पहुंची। देखा उनकी कार काफी दूर है और चिलचिलाती धूप और उमस भी तेज है।
पसीना पोंछती जोशीजी को कोस रही थी, तभी सीमाजी की कार को पार करके अपनी ओर आते हुए एक काली मोटरसाइकिल पर काला टीशर्ट पहने,  बैग को कंधे से कमर की ओर टेढ़ा डाले, एक गोरा युवक आ रहा है, बड़े इत्‍मीनान से गाड़ी चलाते हुए।
 कार धुंधली पड़ गई
युवक पर नजरें गड़ गई
थोड़ा और करीब आने पर
खीज से भर गई
आइला ये तो जोशीजी हैं।
देखकर लगा मानो उन्‍होंने कंधों पर गृहस्‍थी के बोझ को टेढ़ा लटका रखा है। खीज के साथ खुद पर आश्‍चर्य हो रहा था सोच कर कि नैन मटके कि बचपनी आदत गई नहीं क्या ?
अब कार दिखने लगी थी, हमने इशारा किया शायद माजरा भाँप लिया गया, कार हमारे पीछे आ रही थी घर के आगे पहले सीमा जी के दो  प्यारे बच्चो (एक बेटा और एक बेटी )को देखा फिर एक प्यारी मुस्कान वाली गोरी चिट्टी,  भूरी ,नहीं, नहीं शायद कत्थई आँखों वाली खूबसूरत बड़े आकार कि महिला को एकटक देख रही थी कि मेरे पास आकर प्यार से कहा "आपकी बिंदी खिसक गयी है "और उसे खुद ही हाथ बढा कर ठीक किया ,उसके बाद हम सहज थे ऐसे जैसे बरसो से एक दूसरे को जानते हो गर्मी में आये थे सब कोल्ड ड्रिंक देने पर सीमा जी ने मना कर दिया, जोशी जी ने मौके को भुनाया, रसोई में जाकर कोल्‍ड कॉफी खुद बनाकर लाए (उनको यह शौक काफी समय से चर्राया हुआ है)। बचे हुए दूध की थैली यूं ही रख दी। इसी बीच सीमाजी ने कान्‍हा से कहा कि तुम बड़े प्‍यारे हो मैं तुम्‍हे साथ ले जाउंगी। कान्‍हा ने पूछा वापस, तो सीमाजी के बच्‍चों ने चुटकी ली कि अरे तुम्‍हे हमारी मम्‍मी फेसबुक से वापस भेज देंगी।
            कुछ देर बाद बच्‍चों, पतियों और सखियों के अलग अलग ग्रुप बन गए। फिर हमने की असली वाली चुगलियां। आहा चुगलियां वो जो दिल को हल्‍का कर गई और हाजमे को दुरुस्‍त। खाना तैयार था, गर्म ताजा खिलाने की गरज से पूरियां तलने पहुंची। तो सीमाजी भी साथ में आ गई। और फिर हम दोनों मिलकर तल रही थीं काफी कुछ। सबने खाना खाया। बच्‍चों और सखियों के यहां भी अलग अलग ग्रुप बने। मीनू था - राजस्‍थान की प्रसिद्ध कैर सांगरी की सब्‍जी और फोगले का रायता (यह रेगिस्‍तानी खींप पर उगने वाले फूल होते हैं, इन्‍हें पानी में उबालकर दही में मिलाया जाता है), आलू की सब्‍जी, पूरियों के साथ बीकानेर के बीके स्‍कूल के कचौरी समोसे, भुजिया और दाल की बर्फियां। बच्‍चों को सबकुछ पसंद आया तो सीमाजी को केवल फोगले का रायता भाया। दीगर बात थी कि कमजोर स्‍वास्‍थ्‍य का असर कहीं से भी सीमाजी के व्‍यवहार में नजर नहीं आया। अन्‍यथा महिलाएं अपने स्‍वास्‍थ्‍य को अनदेखा कर केवल चिड़चिड़ाती नजर आती हैं।
           खाने के बाद सब समेट जोशीजी और व्‍यासजी की बातों के बीच हम भी धमक गईं। जोशीजी के व्‍यासजी की कुण्‍डली देखते समय सीमाजी व्‍यासजी की जो खिंचाई कर रही थी, उससे सभी के हंसते हंसते पेट में बल पड़ गए, सिवाय व्‍यासजी के। थोड़ी देर में व्‍यासजी ने चलने का आह्वाहन किया तो फिर मन भारी हो गया। एक बार फिर सखी से बिछड़ने की घड़ी आ रही थी। एक-दूसरे से फिर मिलने का वादा किया। सखी सीमा की लाई चॉकलेट ने कान्‍हा की जैसे लॉटरी लगा दी। मगर जब उन्‍होंने निकलने से पहले कान्‍हा से हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह चार कदम पीछे हट गया। उसे सीमाजी की ले जाने वाली बात याद आ गई थी। फिर भी प्‍यार करते हुए आगे बढ़ गई। एक दूसरे की आंखों में झांकते हुए कि "सखी कहीं भूल तो न जाओगी"।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

बस एक ख्‍वाब और...

ना ख़त्म हुआ उनकी मंजिलों का सफ़र ,,
इंतज़ार की हमारे इन्तेहाँ हो गई*
हर मंजिल पर पहुँचने के बाद 
वो कहते हैं ''बस एक ख्वाब और''

मैं एक स्त्री हूँ

- स्त्री जीवन के विभिन्न चरण

...जन्म....


लो जी मेरा जन्म हुआ..
माहौल कहीं कुछ ग़मगीन हुआ..
किसी ने कहा लक्ष्मी जी आई हैं ...
खुशियों की सौगात साथ लायी हैं !
घर में थी इक बूढी माता ...
तिरछी निगाह करके उन्होंने माँ को डांटा !
माँ की कोख को कोसने लगी ...
मुझे मेरे पिता के सिर का बोझ कहने लगी !

.....बचपन.....

अब कुछ बड़ी हो गयी हूँ ...
कुछ-कुछ बातें अब समझने लगी हूँ..
माँ मुझे धूप में खेलने नहीं देती...
काली हो जाओगी , फिर शादी नहीं होगी ये कहती...
भइया तो दिन भर अकेला घूमता..
मुझे मेरी माँ ने कभी न अकेला छोड़ा...
रहते थे एक सज्जन पड़ोस में...
इक दिन माँ ने मुझे देखा उनकी गोद में...
घर लाकर मुझे इक थप्पड़ लगाया..
बाद में मुझे फिर गले से लगाया...
मेरी नाम आँखों ने माँ से प्रश्न किया..
मेरी आँखों को मेरी माँ ने समझ लिया..
गंदे हैं वो बेटा , मुझसे माँ ने ये कहा..
नहीं समझी मैं उनकी बात..
पर माँ पर था मुझे पूरा विश्वास !


.. युवा वस्था ....

अब मैं यौवन की देहलीज पे हूँ..
अच्छा-बुरा बहुत कुछ जान गयी हूँ..
कुछ अरमान हैं दिल में, मन ही मन कुछ नया करने की सोच रही हूँ...
माँ ने सिखाई कढाई-बुनाई ...
और सिखाया पकवान बनाना ...
तुम तो हो पराया धन तुम्हे है दूजे घर जाना...
करती गयी मैं सब उनके मन की..
दबाती गयी इच्छाएं अपने मन की !



...... विदाई ....

चलो ये भी घडी अब आई ...
होने लगी अब मेरी विदाई ...
बचपन से सुनती आई थी...
जिस 'अपने' घर के बारे में....
चली हूँ आज उस 'अपने' घर में..
सासू जी को मैंने माँ माना ...
ससुर जी को मैंने पिता माना ...
देवर लगा मुझे प्यारा भाई जैसा ..
ननद को मैंने बहन माना ...
पति को मैंने परमेश्वर माना ...
तन-मन-धन सब उन पर वारा !



......मातृत्व .....

सबसे सुखद घड़ी अब आई ....
आँचल में मेरे एक गुड़िया आई ....
फूली नहीं समाई मैं उसे देखकर...
ममता क्या होती है, जान गयी उसे पाकर...
सोये हुए अरमान एक बार फिर जागे .......
संकल्प लिया मन में, जाने दूँगी उसे बहुत आगे ...
सच हुआ मेरा सपना अब तो...
कड़ी है अपने पैरों पर अब वो ....



.... प्रौढ़ावस्था ...

उम्र कुछ ढलने लगी अब तो ...
कुछ अकेलापन भी लगने लगा अब तो ...
आँखें भी कुछ धुंधला गयी हैं ..
झुर्रियां भी कुछ चेहरे पे आ गयी हैं...
जो कभी पास थे मेरे, वो अब दूर होने लगे हैं ...
तनहाइयों में मुझे अकेला वो सब छोड़ने लगे हैं...
हद तो तब हो गयी जब मैंने ये सुना...
जिन के लिए न्योछावर तन-मन किया....
उन्होंने ही मुझसे ये प्रश्न किया ..
की तुमने मेरे लिए क्या है किया...
थक गयी हूँ, हार गयी हूँ मैं अब...
बहुत ही निराश हो गयी हूँ मैं अब...
मुड जो देखती हूँ पीछे ..
मजबूर हो जाती हूँ ये सोचने पर ..
कौन थी मैं?कौन हूँ मैं?क्या है मेरा वजूद?
यही सोच-सोच कर अब इस दुनिया से चली बहुत दूर !



... शोभा

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

मृगमरीचिका नहीं हैं खुशियाँ

सफ़र है कठिन

आसान इसे तुम्हें स्वयं ही करना होगा
इन् बाधाओं से तुम्हें अकेले ही लड़ना होगा
न बनो इतने लाचार
ढेरो खुशियाँ फूल बनी बिखरी हैं राहों में
कुछ चुनकर इनमें से ..
महका लो अपना जीवन
कर लो अपने अधूरे सपने को साकार
खता नहीं है कोई ,फूलों से सुगंध चुराना ...
और बादल का इक टुकड़ा अपनाकर उसमें भीग जाना
मृगमरीचिका नहीं हैं खुशियाँ
इनको हासिल कर ..
अपने जीवन के हर पल को ..
जी भरकर जी लो .......




शोभा

मुझे एक याद आती है

भोर की प्रथम बेला में
क्षितिज की नारंगी किरणे
जब धरा को सहलाती है
 मुझे एक याद आती है

जेठ ,अषाढ़ की तपन के बाद
जब सावन की ऋतु आती है
घनघोर बदरिया छाती है
मुझे एक याद आती है

पतझड़ की आंधी के बाद
अंगड़ाई लेती दरख़्त पर
जब नयी कोपलें आती हैं
 मुझे एक याद आती है  

सर्द सर्द रातों में
ठिठुरन को दूर करती जब
चाँद की शीतल तपिश तपाती है
 मुझे एक याद आती है

सबका इंतजार ख़त्म हुआ देख
मेरे ह्रदय को बहुत तडपाती है
मेरी आँखों की नमी
हर पल आभास तुम्हारा करातीं हैं

 मुझे एक याद आती है ..... शोभा

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

आ सखी चुगली करे

नयी सखियों का चुगलखाने में स्वागत है आते ही उनका" उलटवार प्रशन" मुझे पसंद आया क्योकि बहुत सी महिलाए बस अपनी इसी' कला " का इस्तेमाल कम करती है,, आपका प्रशन है की इस ब्लॉग का नाम आ सखी बाते करे भी हो सकता था 
चुगली शब्द नेगेटिव सेन्स देता है


यदि ब्लॉग का नाम होता' आ सखी बुराई करे "...तो ..यहाँ नेगेटिव सेन्स आ सकता था चुगली शब्द कुछ अलग हट कर करने को प्रेरित करता है , " चुगली'' --- वो है जो करने के बाद दिल हल्का हो


दिमाग का खुल कर इस्तेमाल हो ,यह वह कला है जिसमे पारंगत होना हरेक के बस में नहीं ,जहा इसमें इमली सा खट्टापन होता है तो कही चाट सा चटपटापन ..आपकी .कुछ ऐसी बाते भी सामने आये जो आपको दुसरो से जुदा बनाती हो


...अब यह तो आप सभी पर निर्भर करता है की आप इस ब्लॉग का कितना और कैसे उपयोग करती है ,,,मैंने अपनी तरफ से सभी सखियों को'" सखी "का दर्जा देकर उन्मुक्त उड़ने की जगह भर दिखाई है जहा हम सब मिल कर कई रंगों से रंगा सपना देखे, कभी आसमान छूने का तो कभी कल-कल बहती नदिया कि लहरे बन कर समुंदर में गोते लगाने का तो क्यों ना इस इन्द्र धनुषी झूले में हम सब मिल कर बैठे और गाये 


...सखी रे आ बावरी चुनरिया ओढ़े..

बावरा मन्



शनिवार, 2 जुलाई 2011

गौरवान्तित हु..."नारी हु मै.."



अहसास..

भावनाएं..

और खुशियों की 

पर्यायवाची हु मै

समजती हु खुद को 

बहोत भाग्यशाली मै 

क्योंकि...

"नारी हु मै".....!!

रिश्तो की परिभाषाओ से 

बढ़ कर है 

उसे 

प्यार से निभाने का 

समर्पण...

हाँ.. 

सब से प्यार पाने कि 

लालसा

रखती हु मै 

हरदम..

लेकिन

ऐसा भी नहीं कि 

न पूरी हों लालसा

तो 

अपने दायित्व से 

मुकर जाती हु मै...

क्योंकी....

"नारी हु मै "...!!!!

मेरी ख़ुशी 

तो 

सब को खुशियाँ 

बांटने में है,

सबके दिल में 

बसने वाली 

खुशियों में ही तो 

मेरा बसेरा है...;

हरदम 

सबकी खुशियों में 

खुश रहती हु मै...

क्योंकी...

"नारी हु मै "...!!!

इसकी शुरुआत 

इस दुनिया में 

मेरी पहली धड़कन के 

साथ हों जाती है..

और 

निरंतर बहती है 

जिन्दगी के 

हर पड़ाव के साथ 

अन्तिम धड़कन तक 

अविरत 

बहती चली जाती है..;

खुद को भूलके...

हर हालात में 

मुस्कुराती रहती हु मै...

क्योंकी...

"नारी हु मै."...... !!!!....




कविता राठी..